Book Title: Dhavala Uddharan Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir View full book textPage 3
________________ प्राक्कथन तीर्थकर महावीर के सिद्धान्तों का अवधारण जिन महामनीषी श्रुतधराचार्यों ने किया, उनमें कसाय पाहुड के रचयिता आचार्य गणधर तथा षट्खण्डागम विषयज्ञ धरसेनाचार्य से प्राप्त ज्ञान के आधार पर लिखित 'छक्खंडागम के रचयिता आचार्य पुष्पदन्त और आचार्य भूतबलि अग्रगण्य हैं। आचार्य पुष्पदन्त द्वारा रचित सूत्रों के पश्चात् आचार्य भूतबलि ने 'छक्खंडागम' के शेष भाग की रचना की थी। "TheJaina Sources of the History of Ancient India" में डॉ. ज्योति प्रसाद जैन ने षट्खण्डागम का संकलन ई. सन् 75 में स्वीकार किया है। 'छक्खंडागम' छह खण्डों में विभक्त है, जिनमें क्रमशः जीवट्ठाण, खुद्दाबन्ध, बन्ध सामित्तविचय, वेयणा, वग्गणा और महाबन्ध खण्ड हैं। छक्खंडागम के ऊपर ईसा की नवम शताब्दी के प्रारंभ में श्री वीरसेनाचार्य ने धवला नामक टीका लिखी। श्री जिनसेनाचार्य ने अपने हरिवंशपुराण में श्री वीरसेनाचार्य को कविचक्रवर्ती के रूप में स्मरण किया है जितात्मपरलोकस्य कवीनां चक्रवर्तिनः। वीरसेनगुरोः कीर्तिरकलंकावभासते।। श्री वीरसेनाचार्य सिद्धान्त के साथ-साथ गणित, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष आदि शास्त्रों के पारंगत तलस्पर्शी विद्वान् थे। आदिपुराण में श्री जिनसेनाचार्य ने अपने गुरु श्री वीरसेनाचार्य को उपनिबन्धनकर्ता कहा है। वे लिखते हैं सिद्धान्तोपनिबन्धानां विधातुर्मद्गुरोश्चिरम्। मन्मनःसरसि स्थेयान् मृदुपादकुशेशयम्।। धवला टीकाकार श्री वीरसेनाचार्य का समय विवादास्पद नहीं है।Page Navigation
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