Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 5 Author(s): Pandurang V Kane Publisher: Hindi Bhavan LakhnouPage 12
________________ प्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों तथा लेखकों का काल-निर्धारण [इनमें से बहुतों का काल सम्भावित, कल्पनात्मक एवं विचाराधीन है। _ [ई० पू० = ईसा के पूर्व ; ई० उ० = ईसा के उपरान्त] ४०००-१००० (ई० पू०) : यह वैदिक संहिताओं, ब्राह्मणों एवं उपनिषदों का काल है। ऋग्वेद, अथर्व वेद एवं तैत्तिरीय संहिता तथा तैत्तिरीय ब्राह्मण की कुछ ऋचाएँ ४००० ई० पू० के बहुत पहले की भी हो सकती हैं, और कुछ उपनिषद् (जिनमें वे भी हैं जिन्हें विद्वान् लोग अत्यन्त प्राचीन मानते हैं)१०००ई० पू०के पश्चात्कालीन भी हो सकती है। (कुछ विद्वान् प्रस्तुत लेखक की इस मान्यता को कि वैदिक संहिताएँ ४००० ई० पू० प्राचीन हैं, नहीं स्वीकार करते।) ८००-५०० (ई० पू०) : यास्क की रचना, निरुक्त। ८००-४०० (ई० पू०) : प्रमुख श्रौतसूत्र (यथा आपस्तम्ब, आश्वलायन, बौधायन, कात्यायन, सत्याषाढ़ आदि)एवं कुछ गृह्यसूत्र (यथा आपस्तम्ब एवं आश्वलायन)। ६००-३०० (ई० पू०) : गौतम, आपस्तम्ब, बौधायन, वसिष्ठ के धर्मसूत्र एवं पारस्कर तथा कुछ अन्य लोगों के गृह्यसूत्र । ६००-३०० (ई० पू०) : पाणिनि। ५००-२०० (ई० पू०) : जैमिनि का पूर्वमीमांसासूत्र । ५००-२०० (ई० पू०) : भगवद्गीता। ३०० (ई० पू०) : पाणिनि के सूत्रों पर वार्तिक लिखने वाले वररुचि कात्यायन। ३०० (ई० पू०) १०० (३० उ०) : कौटिल्य का अर्थशास्त्र (अपेक्षाकृत पहली सीमा के आसपास)। १५० (ई० पू०) ... (ई. ३०) : पतञ्जलि का महाभाष्य (सम्भवतः अपेक्षाकृत प्रथम सीमा के आसपास)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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