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लंबाई एक हाथप्रमाण, अने पहोळाई ३ आंगळप्रमाण १६८x२३ इंच प्रमाणना प्रत्येक ताडपत्रमा बंने बाजूनी मळी प्रायः १६ सोळ पंक्तियो छे, प्रत्येक पंक्तिमा प्रायः १०८ अक्षरोनो समावेश करवामां आव्यो छे । आ पुस्तिकानो अंत भाग अपूर्ण होवाथी, प्रशस्ति वगेरे भाग न होवाथी, पोथी लखायानो निश्चित संवत् वगेरे सूचवी शकाय तेम नथी, अनुमानथी ते तेरमी अथवा चौदमी सदीमां लखाएली धारवामां आवे छे । आ पोथी, संपादनमां मुख्यतया आधारभूत थएली छे, तेना प्रथम पत्रनी प्रतिकृति(फॉटो) करावी अहीं प्रारम्भमां दर्शाववामां आवेल छे ।
[२] क. आ संज्ञाथी सूचवेली पोथी, पवर्तक मुनिराज श्रीकान्तिविजयजीना शास्त्रसंग्रहनी, वडोदराना जैनज्ञानमन्दिरनी छे । ते १२"४" इंच लंबाई, पहोळाइवाला कागळो पर लखाएली छे, छतां सोमसुन्दरसूरिना समयमां-पन्नरमी सदीमां लखाएली प्राचीन जणाय छे. तेना प्रथम पत्र उपर लाल श्याहीथी करेलुं नन्द्यावर्तनुं मांगलिक चिह्न छे, अने प्रत्येक पत्रमा पहेली बाजू मध्यमा १ लाल चन्द्राकार तिलक, अने बीजी बाजू ३ लाल तिलकोनी निशानी छे । लखावनारे आ पहेला अनेक ग्रन्थो आवी रीते एक ज लेखकद्वारा लखाव्या हशे, तेम सूचवती आ पोथीमां चालु पत्र-संख्या १३६८थी १४४७ जणाववामां आवी छे, तथा आ ग्रन्थ पूरती जूदी पत्र-संख्या १थी ८० जणावेल छे, जमणी बाजू ताडपत्रीय पोथी प्रमाणे प्राचीन लिपिमां सांकेतिक अक्षरोमां पण तेनुं सूचन छे, पडीमात्रामां मनोहर अक्षरोमां शुद्धाशुद्ध लखाएली आ पोथीमां प्रत्येक पत्रमां, बंने बाजूनी मळीने ३२ पंक्तियो, अने प्रत्येक पंक्तिमां प्रायः ७२ अक्षरोनो समावेश करेलो छ । तेना छेल्ला पत्रनी प्रतिकृति(फॉटो) करावी अहीं दर्शावेल छे । __[३] ज. आ संज्ञावाळी पोथी, श्रीजिनविजयजी द्वारा जेसलमेरथी आवेली छे, ते कागळो पर स्थूल अक्षरोमां लखायेली छे । लंबाई एक वेंत अने सात आंगळ, तथा पहोळाई सात आंगळ, इंच १३४५ पत्र-संख्या १४३ छे । वधारे अशुद्ध छे । तेना प्रत्येक पत्रमा बंने बाजूनी मळी २६ पंक्तियो छे, प्रत्येक पंक्तिमा प्रायः ४८ अक्षरो छे । श्याहीमां गुंदर वधारे होवाथी तेनां पानां एक बीजा साथे चोंटी जाय छे, बहु संभाळथी तेनो उपयोग करवामां आव्यो छे. तेनां ९१ पत्रो ज प्रथम मळ्यां हतां, ग्रन्थनी प्रकाशननी समाप्तिना समये बाकीनां पानां पण जोवा मळ्यां हतां । पोथीना अंतमां जूदी जणाती लिपिमा लखवानो संवत् १६७७ वगेरे जणावनारी अशुद्ध पंक्ति, पृ. २३०नी टिप्पनीमां अम्हे प्रकट करी छ । जेसलमेर(मारवाड)ना भंडारोनी वर्णनात्मक ग्रन्थ-सूची [गा. ओ. सिरीझ् नं. २१, पृ. १३, ५३] मां अम्हे आ पोथीने त्यांना तपागच्छना उपाश्रयना भंडारमा रहेली जणावी छ ।
[४] प. आ संज्ञा अम्हे पुण्यपत्तन(पूना)ना भांडारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूटनी
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