Book Title: Dharmopadeshmala prakaranam
Author(s): Jaysinhsuri, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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[२६५
परोपकारे कृष्णवासुदेवकथा]
सुयदेविपसाएणं सुयाणुसारेण अ(इ)त्थिपुरिसाण। चरियं जो सुणइ नरो सो विरमइ जावजुवईसु ॥
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परकज्जकरणनिरया महाणुभावा चयंति नियकज्जं । असिवोवसर्मि भेरिं पत्थंतो वासुदेवो व्व ॥७९॥ [परकार्यकरणनिरता महानुभावास्त्यजन्ति निजकार्यम् । अशिवोपशमां भेरी प्रार्थयन् वासुदेववत् ॥७९॥]
[१०५. परोपकारे कृष्णवासुदेवकथा] सुहाए बारवई नयरि त्ति
जा कण्ह-हलहराणं कज्जे तियसेहिं रयणनिम्मविया ।
महिमहिलाए चूडामणि व्व को वन्निउं तरइ ? ।। तीए य दसारकुलनहयलमियंका बलदेव-वासुदेवराइणो । वासुदेवस्स य गोसीसचंदणमईओ देवयाहिट्ठियाओ चत्तारि भेरीओ, तं जहा–संगामभेरी, कोमुईभेरी, उच्चय(च्छव) भेरी, असिवोवसमभेरी । का पुण एताण उप्पत्ती ?-सोहम्मे कप्पे अणेगदेवपरिखुडेण भणियं सक्केणं ति । अवि य
"अरहंत-चक्कि-हलहर-केसव-नरनाहपुंगवा दोसं ।
न लयंति परस्सेए जुझंति न अहमजुज्झेणं" ॥ तओ इममसहद्दहंतेण भणियमेगेण देवेण । अवि य
सुंदरमियरं रुट्ठा कुणंति इयरं पि सुंदरं तुट्ठा । कलिकालपिसुणसरिसा अव्वो ! सग्गे वि सुरनाहा ॥ कलिकालपिसुणसरिसो होसि तुमं मूढ ! न उण तियसिंदो। 20
किं वा वि पलत्तेणं? सच्चे गंतुं परिक्खाहि ॥ आगओ सो परिक्खकज्जेणं । इओ य समोसरिओ अरिटुनेमी । अंतराले विउव्वियं अच्चंतदुईसणं दुरहिगंधि किमिकुलाउलं सुणयमडयं । पयट्टो सबलो
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१. ह. क. रु।
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