Book Title: Dharmanand Shravakachar Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur View full book textPage 3
________________ ১৪৫তি वर्तमान युग में भगवान आदिगश से भगवान महावीर श्रुत परम्परा के मूलकर्ता हैं तथा गणधर वृषभसेन से गणधर गौतम स्वामी श्रुत परम्परा के उत्तरकर्ता हैं। उसके बाद अर्वाचीन ऋषियों से श्रुत परम्परा प्रवाहित होती आ रही है। आज ख्याति प्राप्त आचार्य कुंदकुंद देव का नाम श्रुत परम्परा में अच्छी तरह से लिया जाता है। इन्होंने भगवान सीमंधर स्वामी से सुनकर श्रुत को प्रवाहित किया है। बीसवीं शताब्दी में सर्वप्रथम आचार्य परम्परा में मुनिकुञ्जर आचार्य परमेष्ठी आदिसागर अंकलीकर का नाम लिया जाता है | इन्होंने अपनी आराधना से आराधित आत्मा से उदृत श्रुत को जिनधर्म रहस्य, दिव्य-देशना, उद्बोधन, शिवपथ (संस्कृत), प्रायश्चित्त विधान (प्राकृत), वचनामृत, अंतिम दिव्य देशना इत्यादि के नाम से किया। इसी परंपरा को परंपराचार्य श्री महावीरकीर्ति जी ने फाल्गुन शुक्ला ११ ग्यारस १७ मार्च १९४३ को मुनि कुञ्जर आचार्य परमेष्ठी आदिसागरजी महाराज अंकलीकर से दीक्षा लेकर एवं इसी वर्ष गुरु का आचार्य पद चातुर्मास में प्राप्त किया। ____महापुरूषों का जीवन निस्पृही और परोपकारी होता है। दुःखी प्राणियों को अनंत सुख में परिणमित करने में उपयोग लगा रहता है। उन्हीं महापुरूषों में से परम पूज्य गुरुदेव आचार्य महावीरकीर्ति जी महाराज है जिन्होंने अपने लोकोत्तर ज्ञान को अपने गुरूदेव परम पूज्य महामना मुनि कुञ्जर समाधि (१०)Page Navigation
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