Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 01
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 147
________________ धम्मि तं जगत्यत्र / ऋतवः षट् प्रकुर्वते // अंगे ग्रीष्मो दृशोर्वर्षा / मातुस्ते ध्रुवतां ययुः // 1 // तदे। सार्थ हि देहि सौहित्यं / मातुरातुरयोदशोः // जिनानामपि यन्मान्या / माता दुःकरकारिणी // 7 // | महीनहितहक्सोऽथ / प्रत्यूचे तानपत्रपः // इहस्थस्यैव मे पित्रोः। प्रणामं कथयेत नोः॥ 3 // | मयेदं निर्वृतिस्थानं / प्राप्तं पुण्यप्रसादतः // ततः किं वलितः कोऽपि / यहालयति मामितः ॥ज्या माता प्रिया भवेद् बाल्ये / प्रियेयं यौवने पुनः // वितन्वंति वयोवस्था-व्यत्ययं न विवेकिनः // ऋतु निश्चल रहेला . // 1 // माटे तुं चाल घने तारी यातुर मातानी अांखोने मक श्राप ? केमके जिनेश्वर प्रचलने पण माता माननीक बे, कारण के ते पुत्रमाटे घाणु कष्ट सहन करनारी ने. // 2 // त्यारे जमीनतरफ दृष्टि करीने ते निर्लङ धम्मिले कयु के, मारा मातपिताने तमारे कहेवू के हुँ यहीं बेटोज आपने नमस्कार करुं बु. // 73 // वळी पुण्ययोगेज म. ने या निवृत्तिनुं स्थान मट्युं , तेम तेवां निवृत्तिस्थानथी शुं को पागे वल्यो ? के जे मने यही ते पागे वाळवानो प्रयत्न करे ! // 4 // माता तो बाल्यावस्थामां प्रिय होय , परंतु / यौवनावस्थामां तो या स्त्री प्रिय थ पड़े , माटे विवेकी पुरुषो उमरयोग्य व्यवस्थामा फेरफार P.P. Ac: Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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