________________ धम्पि- पश्यन्नितस्ततः // न प्रासादं न देवी च / न च योगिनमैदत // 70 // याः किमेतदिति ध्यान विधुरः स निरैदत / / कतिचित्सिचये लमां-स्तीदणप्रांतान हिरण्मयान / / 75 // हैमा एवाऽनव नेते / यवाः श्रीवल्लिपल्लवाः // सामान्ययववद् दृष्टा / हा मया दिव्यमायया // 70 // क्रोधधूमां१६७ | धितादाश्चे-नानविष्यमहं तदा // तदावदान्या साऽदास्य-दास्यघ्नं देवता रसं // 1 // यात्मैव य. | दि मे वैरी / तदलं परिदेवनैः // इति ध्यायन वृथोपायः / सोऽचालीदेकया दिशा // 72 // यामंदिर देवी के योगी तेमानुं कई पण तेणे दी नहि. // 7 // अरे! या शुं थ गयें! एम विचारथीज गजरायेला ते ब्राह्मणे पोताना वस्त्रने चेंडे वळगेला केटलाक तीक्ष्ण अणीदार-सुवर्णना यवो जोया. // 70 // अरे! या तो लक्ष्मीरूपी वेलडीना पल्लवसरखा सोनाना यवो हता! परंतु दिव्य मायाथी में मूर्खे तेनने सामान्य यवोजेवा जोया ! // 70 // अरे! ते वखते जो हैं क्रोधरूपी धूमाडाथी बांधळो थयो न होत तो ते उदार देवी मने दास्यपणानो नाश करनारी सिघरस बापत. // 1 // वळी हुँ पोतेज पोतानो ज्यारे वैरी थयो त्यारे हवे खेद करवाथी स. र्य, एम विचारी वृथा प्रयत्नवाळो ते ब्राह्मण एक दिशातरफ चाब्यो. // 72 // त्यां ते वनचर प. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust