Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 01
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 150
________________ - सार्थ 14 धम्मि- पुनः // 4 // संचिकाय धनं किंचि-द्याचं याचं जनानसौ / / दारकर्म च निर्माय / नेजे स्नातः / कतामपि // 55 // पुत्रपौत्रादिविस्तारं / तारं पाप क्रमेण सः // बीजेऽटपेऽपि किया जातो / वटवृदस्यः मंबरः // ए६ // कदाचिचिंतयामास / निशांते स निशातधीः // तावन्मनाग्मया लब्धमधनेनाधुना धनं // 7 // वीदितानेकदुःखस्य / न मे कृपणतोचिता // को वेत्ति विादद्योतचंचलायाः श्रियो गति // ए // कारयिष्ये सरः स्वल्पं / तदयविनवोऽप्यहं // पश्चादपि जनो से जीख मागी मागीने कईक धन एक कर्यु, तथा पनी ते परणीने गृहस्थपणामां पड्यो. // // 55 // पनी अनुक्रमे तेने पुत्रपौत्रादिकनो घणो परिवार थयो, जुन के स्वल्प बीजमांथी पण वमनो केवडये विस्तार थाय ? // 6 // एक दिवसे ते बुध्विान ब्राह्मण परोढीये विचारवा लाग्यो के, घरे! मने निर्धनने हवे कक धन पण मन्यु ने, // 7 // में घणां घणां दुःखो सहन कर्या ने, माटे हवे मारे लोग करवो नचित नथी, केमके विजळीना चमकारासरखी चं. |चल लक्ष्मीनी गति कोण जाणी शके ? // // माटे स्वल्प धन उतां पण हं एक तळावब |नावोश, के जेथी पाळयी पण लोको मारुं नाम जाणी शके. // एपरी तेणे सार। जमी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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