Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 01
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 157
________________ धम्मि जोः केलिप्रियाः केऽपि / कारयति वधं सुराः / केखिमात्रं भवेत्तेषा-मन्येषां जीवितत्रुटिः // 20 // सार्थ वेदोक्तोऽपि .वेडीव-वधः पापनिबंधनं // अंगोधादपि संतो। दहतीरंमोदो न किं // 30 // नीरागाः स्वर्गतौ गगा / हूयते श्रोत्रियैर्यथा // प्रिया तथा विप्र-कुलं किं ते न जुह्वति // 156 // 31 // श्रात्मानं जुहयुश्चेत्ते / तत्पश्चादकुतो जयं // तृणाश्यपि गगकुलं / नुक्ते स्वर्गाधिक सु. खं // 35 // वधं विदधते येऽत्र / वैधेया धर्म हेतवे / / तेंगारनारं वर्षेति / विवर्षयिषवों वनं // 33 // जीवहिंसा करावे , तेमां तेने तो फक्त गम्मत मळे ने, परंतु अन्योना जीवितनो विनाश थाय . // 25 // वेदमां कहेली जीवहिंसा पण पापोना कारणरूप थाय ने, केमके वादळांमांयी उत्पन्न थयेली वीजळी पण शुंबाळती नथी? // 30 / / स्वर्गमां मोकलवामाटे जेम ते वेदीया ब्राह्मणो निरपराधी बकरानने (अमिमां) होमे , तेम स्वर्गानिलाषी ब्राह्मणकुलने तेन शा माटे होमता नथी? // 31 // वळी जो तेज पोतानेज (अमिमां) होमी दे तो पनी तेजने कोश्नो पण जय रहे नहि, अने घास खाना बकरानुं कुल पण स्वर्गथी अधिक सुख नोगवे. // 35 // जे नोच पुरुषो यहीं धर्मने बहाने वध करे , तेन अंगारानो वरसाद वरसावी वनने P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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