Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 4
________________ 1 ] इस शोध-प्रबन्ध मे निहित अध्ययन को दो खण्डो मे वाट दिया गया है प्रथम खण्ड मे चार अध्याय हैं । प्रथम अध्याय-प्राचार्य हेमचन्द्र के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व का निदर्शन है । द्वितीय अध्याय-देशीनाममाला के स्वरूप पर प्रकाश डालता है । ततीय अध्याय-देशीनाममाला मे आयी हुई उदाहरगा की गाथाग्रो के साहित्यिक सौन्दर्य पर प्रकाश डालता है । चतुर्थ अध्याय-देशीनाम्माला के सास्कृतिक महत्व का निदर्शन है । प्रस्तुत शोध-प्रवन्ध का द्वितीय खण्ड देशीनाममाला के भापविज्ञानिक महत्व पर प्रकाश डालने वाला है। इस खण्ड मे कुल तीन अध्याय हैं । पचम अध्याय देणी' शब्दो के स्वरूप विवेचन तथा उनके उद्भत्र एव विकास की सैद्धान्तिक चर्चाप्रो से सवधित हैं । पप्ठ अध्याय मे देशीनाममाला के 168 देशी शब्दो को हिन्दी तथा उसकी प्रमुख वोलियो मे स्वला परिवर्तन के साथ ज्यो का त्यो व्यवहृत होते दिखाया गया है । सातवा अध्याय 'देशी शब्दो के भापाशास्त्रीय अध्ययन से सबद्ध है । इस अध्याय का पूरा अध्ययन ध्वनिग्रामिक, पदात्मक एव अर्थ गत तीन खण्डो में विभाजित है । इस प्रकार प्ररतुत शोध-प्रवन्ध का सारा अध्ययन कुल दो खण्डो और सात अध्यायो मे विभाजित है, जिनमे देशीनाममाला के विविध पक्षो का सुष्ठुप्रकाशन एव उमके महत्व-निदर्शन का प्रयास किया गया है । प्रस्तुत शोधकार्य को सम्पन्न करने की बलवती प्रेरणा मुझे अपने पूज्य गुरु डा० माताबदल जायसगल जी से मिनी । समय समय पर श्रद्धेय गुरु डा. लक्ष्मीसागर वाष्र्णेय की कृपा-प्रेरणा ने भी मुझे पागे बनने मे प्रोत्साहित किया है । सच पूछा जाये तो डा० वार्ष्णेयजी की स्नेहमयी प्रेरणा ने ही मुझे यह गुरुतर कार्य-मार उठाने की शक्ति दी थी। सस्कृत विभाग के प्रो० महावीरप्रसाद लखेडा जी ने नित्य मुझे विपय से सम्बन्धित नवीन सूचनाए देकर अनुग्रहीत किया है। अत इन सभी का मैं हृदय से प्राभारी ह । अन्य विभागीय गुम्यो से भी मुझे समय-समय पर प्रेरणा एव सहायता मिलती रही है, प्रत इन सभी का मैं हृदय से प्रभारी हू । परम आदरणीय श्री राजकिशोर सिंह (वरिष्ठ प्रवक्ता हिन्दीविभाग यूइ ग क्रिश्चियन कालेज-इलाहावाद) ने भी इस शोधकार्य मे पर्याप्त सहायता की है, अत में उनका भी हृदय से आभारी हू । मेरे परमहितपी मित्र श्री सूर्यनारायण मिश्र डा० हरिशंकर तिवारी तथा डा० पद्माकर मिश्र ने भी पर्याप्त सहयोग दिया है अत मैं इनके प्रति भी अपना प्राभार व्यक्त करता है। इस शोधप्रबंध के टङ्कण का कार्य मेरे प्रिय मित्र श्री मेवालाल देखेकधी ने रुचि' लगन एव योग्यता के साथ किया है, अतः मैं इनका भी आभारी हू सहायक ग्रन्थो की सूची अन्त मे परिशिष्ट के रूप मे दे दी गयी है । -डॉ० शिवमूर्ति शर्मा

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