Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ दसवेप्रालियसुत्तं अज्झयण २ 'समाइ पेहाइ परिव्वयन्तो सिया मणो निस्सरई बहिद्धा। "न सा महं नो वि अहं पि तीसे" इच्चेव ताओ विणएज रागं ॥४॥ पायावयाही, चय सोगमल्लं. कामे कमाही, कमियं खु दुक्खं । छिन्दाहि दोसं, विणएज रागं, .. एवं सुही होहिसि संपराए ॥ ५॥ पक्वन्दे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं । नेच्छंति वंतयं भोत्तुं कुले जाया अगंधणे ॥ ६ ॥ धिरत्थु तेऽजसोकामी जो तं जीवियकारणा । बंतं इच्छसि आवेउ ! सेयं ते मरणं भवे ॥ ७ ॥ अहं च भोगरायस्स तं च सि अन्धगवण्हिणा । मा कुले गन्धणा होमो, संजमं निहुप्रो चर ॥ ८॥ जह तं काहिसि भावं जा जा दिच्छसि नारित्रो । वायाविद्धब्ध हडो अट्ठियप्पा भविस्ससि ॥ ६ ॥ तीसे सो वयणं सोचा संजयाए सुभासिय । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइप्रो ॥ १० ॥ एवं करेंति संबुद्धा पण्डिया पवियक्खणा । विणियट्टन्ति भोगेसु जहा से पुरिसुत्तमो ॥११॥ त्ति बेमि ॥ ॥ बीयं सामण्णपुव्वयज्झयणं समत्तं ॥ १. समाए पेहाए । २. जसोकामी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 256