Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

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Page 14
________________ अज्झयण ४ दसवेडालियसुत्त न समणुजाणामि, तस्स भन्ते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥८॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिा वा गओ वा एगो वा परिसागो वा सुत्त वा जागरमाणे वा, से अगणिं वा इङ्गालं वा मुम्मुरं वा अञ्चिं वा जालं वा अलायं वा मुद्धागणिं वा उक्कं वान उजेज्जा न घट्टेज्जा न भिंदेज्जा न उउजालेज्जा न पज्जालेज्जा न निव्वावेज्जा, अन्नं न उजावेज्जा न घट्टावेज्जा न भिंदावेज्जा न उज्जालावेजा न पज्जालावेजा व निव्वावेजा, अन्नं उजंतं वा घट्टतं वा भिदंतं वा उज्जालंतं वा पन्जालंतं वा निव्वावंतं वा न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमिन कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भन्ते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥६॥ __ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा रायो वा एगओ वा परिसामओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा, से सिएण वा विहुयणेण वा तालियंटेण वा पत्तण वा पत्तभंगेण वा साहाए वा साहाभंगेण वा पिहुणेण वा पिहुणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकरणेण वा हत्येण वा मुहेण वा अप्पणो वा कायं बाहिरं वा वि पोग्गलं न 'फूमेजा, न वीएजा अन्नं न फूमावेजा न वीआवेजा अन्नं फूमन्तं वा वीयन्तं वान समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणे वायाए काए न कस कारवेमि करें पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पंडिकमामि निन्दामि १. फुमेज्जा ।

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