Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

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Page 13
________________ दसवेलियसुत्त से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खाय पावकम्मे दिया वा राम्रो वा एगओ वा परिलागओ वा सुते वा जागरमाणे वा, से पुढवि वा भित्तिं वा सिलवा लेनं वा ससरक्खं वा कार्य ससरक्खं वा वत्थं हत्थेण वा पण वाकट्ठे वा किलिंचेस वा श्रङ्गुलियाए वा सलागाए वा सलागहत्थेण वा न लिहेजा न विलिहेजा न घट्टेजा न भिन्देजा, अन्नं नालिहावेजा न विलिहावेजा न घट्टावेजा न भिन्दावेजा, अन्नं श्रालिहन्तं वा विलिहन्तं वा घट्टन्तं वा भिन्दन्तं वा न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेां मणे वायाए कारणं न करेमि न कारयेमि करन्तं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अपागं वोसिरामि ॥७॥ अज्झयण ४ सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय विरयपडियपच्चक्खापावकम्मे दिया वा राम्रो वा एगओ वा परिसाग वा सुत्ते वा जागरमाणे वा, से उदगं वा ओसं वा हिमं वा महियं वा करगं वा हरतयुगं वा सुद्धोदगं वा उदउल्लं वा कार्य उदउल्लं वा वत्थं, ससिणिद्धं वा कार्य, ससिद्धिं वा वत्थं नामुसेज्जा न संफुसेज्जा न आवीलेज्जा न पवीलेज्जा न अक्खोडेज्जा न पक्खोडेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा, अन्नं नामुसावेज्जा न संफुसावेज्जा न श्रावीला वेज्जा न पवीलावेज्जा न खोडा वेज्जा न पक्खोडा वेज्जा न श्रयावज्जा न पयावेज्जा, अन्नं मुसन्तं वा संफुसन्तं वा श्रवलन्तं वा पवीलन्तं वा खोडन्तं वा पक्खोडन्तं वा श्रयावन्तं वा • पयावन्तं वा न समजा णामि, जावजीवाए तिविहं तिविहेां मां वाया काएां न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्नं १. कलिंचे ।

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