Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh

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Page 110
________________ परिशिष्ट [ख] चरित्रनायक दादा श्रीजिनकुशलसृरिकृता स्वगुरुगुणगर्भितचरित्रवर्णनात्मिका जिनचन्द्रचतुस्सप्ततिका। सिरि जिणचंद गणीसर-पाए नमिउं तमम्मि रविप.ए । काहं गुण कण थवर्ण, नियसुगुरूण गुणगुरूणं ॥१॥ जइ जगजणे हविज्जा, परमाऊ ताणि य पउण-मइकलिआ। तहवि न तीरह तुह गुण गणगणणे कहमहं ? थविआ (?)॥२॥ तह वि पह चित्त भत्ती-अचिंत-चिंतामणी पसाधाओ पहविस्सइ मह सत्ती, तुह गुण थुणणे किमच्छेरं ? ॥३॥ तुम्हाणं थु(मु)त्ताहल-पवराण नराण जत्थ उप्पत्ती। कित्ती पड़ागा रेहा, सो वसो भुवण-भवणुवरि ॥४॥ जत्थ पहूर्ण तुम्हा-ण तिहुअणत्ताणकरणथवयरणं । किं चुज्जं ? सो देसो, वि(चि)रक्खाओ मारवत्ति ति ॥५॥ तुह ससिणे आणाथर्ण(?), जम्मणमहिमामिसेण जेण कयं । तेण पसिद्धं जायं, सम्माणथणित्ति नामेणं ॥६॥ सिरिमंति देवराओ, जाओ जणओ पहूण तुम्हाणं । कहमन्महा सरीरे, जयंतकुमरुव रूवसिरि? ॥७॥ भररयण रयणगन्मा, कोमलदेवी य मंतिणि जगणी। वेयविलोयणतिहुअण-ससि(१३२४)मिय वरिसे तुहुप्पत्ती ॥८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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