Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh
View full book text
________________
ताम धवल मंगल [तू परवर, मन मेलहइ हरषि कूर । वाजइ तिवलि तूर निसाण, पड़ मोह भूमिपति प्राण ॥२६॥ तरल तुरंगम चड़ कुमार, अंगि अनोपम तमु सिणगार। सिरिपरि सीकरि छत्र ऊमाल, पाछह लूण उतारइ बाल ।२७॥ माइ वधावेव दियइ आसीस, करमण' नामई तसु प्रति सीस क्रमि नरनारी चाल्यूं सहूं , तिणि खणि विरळउ हुय घर रहू मारगि पगिपगि नाटक रंग, सुपरिहिं पसाई दानज रंग । दानसूर अनुयाचकवृंद, इहु बिहुँ पूगउ मन आणंद ॥२९॥ जेल्हासुत विस्तरि गुरु पासि, आवइ गरुअइ मन उल्लासि । तमु संगमि हरषिउ गुरु सोइ, पात्र लामि नहु रीझइ कोइ विविधरूपि तहिं मंडियनंदि, गाय गायन नव नव छंदि। ध्यान जलणि आहुति अन्यान, कीजइ तिल जवसरसत्र ध्यान
मास जोसिय सिरिजिण चंदगुरु, लाडण तहिं करमण रूपिसुर सजन मेलावइ आवीयउए, संयमसिरिनइ परणाविउए।॥३२॥ कुसल कित्ति तसु नामूए, जगि जंगम सोहग ठामृए । नारि दिया तव चाचरीए, गुरु गरुअड़ी दहदिसि संचरीए सहज मनोहर सरि करीए, किर कंठिहिं कोइल अवतरीए। कड़ि कसमसत पटोलडीए, कवि गाया भंभर भोलडीए ३४ उरलिय लहकर हारूए, पगि नेऊर रणझण कारूए । बाला ताला रसि रमईए, खलकत करि कंकण चूडम[ई ए केलिगम्भ सुकुमालतनु, धन लावण धन लीला मयनु । लड़हिय रंगिहि ललिषमणि, किवि जोयइ टगमग निय नयणि
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128