Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh

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Page 123
________________ 4 . १०२ तहिं थानक थाप्यउ थिर थूभ, सेव करइ जण बइठा ऊम । रत्नत्रय आरोपी तिहाँ, जे पूजइ तिहां दूषण किहाँ ?॥५७।। थूलभद्र वयरादिक जेय, सरगि गया जिम नमियह तेय । थूम जेम जिण गणहर केर, ईहां पुणतिम म घरह फर ॥५८॥ जमु तेरह सतत्रीसइ जम्म, छहतालइ सिरिसंजमधम्म । पाटणि सतहत्तरइ जु पाट, नवासियह जसु सगह वाट ॥५९।। भूमंडलि सग्गिहिं पायालि, सचराचरि जगि इणि कलिकालि प्रभु प्रताप नवि मानइ जोइ, मइ नयणे नहु दीठउ सोइ ।६०। निरधन लहइ धणधन सुरण, पुण्णहीण पामह बहु पुण्ण। असुखी पामह सुखसंतान, एकमना करता प्रभु ध्यान ।६१। प्रभु समरणि आपद मवि गलइ, श्रेय शांति सबि संपद मिलइ आधि व्याधि चिंता संताप, सवि छंडइ नहु मंडह व्याप पाप दोष नवि लागइ ताह, प्रभुदरिमणि उतकंठा जाँह । सेवंतह सुरतरु चिय छाह, दालिद निश्चय मेल्हह बाँह ॥६३।। विस विसहर विसतर नरनाहु, भूत प्रेत ग्रह व्यन्तर राहु। प्रभु नामहि तेह न करहपीड़, भाजइ भवभय भारठि भीड़ रोग सोग मवि नासह दरि, अंधकार जिम ऊगह सूरि । मूरख फिटी पंडित थाइ, प्रभु पसाइ सवि दुरिय पुलाइ ६५ दिनिदिनि जिनशामनि उद्योत, जहिं प्रभु छई भत्रमागर पोत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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