Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ धमधमंत जिणि परियउ कोप, खमा खड्गि तसु कीघउ लो[प] ए? इणि परिसुभट पड़ह रणखेत्रि, तरुवर पान जिम धुरि चैत्रि मयणमल्ल जिणि हेलामाटि, हाहा हणियउ हिययकपाटि । ब्रह्मतेज महिमा सा जाणि,लीजइ ज बलवंत विनाणि ॥४८॥ मुहि मुद्रिइ आवह अन्यान, न्यान लकुटि तसु फेडिउ थान समकितसिरिजिणि कीधउघाउ, भागउ मिथ्यामतमडवाउ॥ इणि परि मोहसेन भजेवि, दहदिसि जयजयकार लहेवि। जयत्रहस्त जगि उदयउ घर, गच्छराज परिपालइ पूर ॥५०॥ आचारिज तरुणप्रभसूरि, जिणि थापिउ जिणमासण सरि । किवि वाणारिय किवि उवज्झाय, किवि दिक्खिय उत्तम. . कुलजाय ॥५१॥ संघपति जिणबिंधपतिह, विजयवंति जिणि विहिय विसिद्ध। मानतुंग सित्तुजय संगि, हुय विहार जसु बुद्धि प्रसंगि।५२। अवरवि कीधा जे उपगार, तिह हुं जाणुं संख न पार । जीह सहस जउ मुझ मुख हुति, तउ तसु गुण परिमाण लहंति संयम सिरि उरमंडलि हार, नवकलपियहिं जो करइ विहार । खरतरगच्छराय हुं सिंगार, पालइ पूचरिषि आचार |॥५४॥ जुगप्रधान कमला श्रीकंत, उत्सूत्रह परिहार करंत । सो मुणिवर पयडंत उ तत्त, सिंधुदेश विहरंतउ पत्तु ॥१५॥ अंतसमय जाणिय तहिं ठाइ, ध्यानि मोनि तपिजपि दृढ थाइ । सो सहगुरु कलिकसमलधोइ, देर उरि पहुतउ सुरलोइ ॥५६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128