Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh

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Page 124
________________ सो जुगवर मई भेट्य उ आज, रलिय रासि सवि कीधा काज भासआज घरंगणि सुरतरु फलियउ, चिंतामणि मई करयलि कलियउ। उदयउ परमाणंद भरे, आज जीह मई धषिय गणियइ । जुग पपरागम जइ मई थुणियउ, चंद्रगच्छ महिमा निलउए ।। कोइ करहु . पृथिवीपति सेवा, कोह मनावउ देवी देवा। चिंता आणह काइ मनि, वार वार इहु कवित्तु भणीजह । श्रीजिनकुशलसरि समरीजइ, सह काज आयास बिणु ॥ संवत् चउद इगासिय परिसिहि, मल्लिकवाहण पुरवरि मनहरिसिहि । अनिय जिणेस पमाय बसि, कियउं कवित बहु मंगल कारणु विषन हरम पर पापनिवारणु,कोइ म संमउ करह पनि ६९ जिमजिम सेवई सुरनरगया, श्रीजिनकुशल मुणीसर पाया। जयमागर उपज्झाय तिम, इम जो सुहगुरुगुण अभिनंदा। रिद्धि समृद्धिहिं सो चिरु नंदा, मनवंछित फल तसु हवइए । इति श्रीमधुगप्रधान श्रीजिनकुशलमरीन्द्राणां ___चतपदिका मप्ततिका संपूर्णा । श्रीजयसागर महोपाध्यायकृता। श्रीजिनसिंहपूरिशिष्य पण्डित हेममन्दिरसनि लिखिता सुखाय । श्री शम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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