Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh

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Page 121
________________ सहूयह कउतिग देखि करे, तउ पहुतउ आपण आप घरे। सुङगुरु वासिहि महमाउए, गुरुहरि इण कुसलिगमुनि राउए सो लघु मुणि वर सुद्धाचार, विनयविवेक विचाराधार । नमइ स्वमद खमावइ सवि दीस,एबहु पुणिहिं लाभइ सीस ३८ ठामिठामि पामइ सोभाग, तमुवरि लोक धरह अनुराग। गुरु आपइ विद्या आपणी, थानकि कुण न करइ थापणी।३९। पापभीरु ससिसोमाकारु, जो साधइ तपु किरिया सारु । वायणायरिय क्रमि कीधउ सोह, पुणिहिं गरु अड़ि बहठो होइ गुरुमनि मानिउ सो गुणवंत, जाणिय नियजीविय पजंत । पाटसीख आयरियह देइ, आपणि सरगह सुखमाणे।।४१॥ गुरु आप सकरण सानंद, श्रीराजेंद्र चंद्रमरिंद । सरिमंत्र तमु आपह ताम, श्रीजिनकुशलसूरि इहु नाम ४२ भवजलनिधि उत्तारण घाटि, श्रीजिणचंद मुणीसर पाटि। माणिक जिम नव सोवनघाटि, सोहह सूरि सुमुनिवरधाटि ४३ जसु मंडिय खंडिय बंभंड, खंडिय पाखंडिय पाखंड । जो जगि जागइ तेजि पयंड, मोहरायसिरि पाडइ दंड ४४ स्वरि[सिरि कवणु मई मागइ दंड, इम वर बरत लेइय लोहंड झूकतउ जिणि जीवउ मोह, सासन चम चाविय सोह ४५ ताम मान मायाऽहंकार, लहइ पुलंता ते धिक्कार । मुरख कायर जेह असार, कह किम पामइ ? ते जयवार।४६। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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