Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh

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Page 114
________________ परिहवई नवि कोवि हु, जियगयघड़सीहपोएब्ध ॥४१॥ विबुहाहिवेण परिय-कामेणग्गंधश्रमियहिटेण । सचवियं तुमएचिय, अथो वियजायए पुत्तो ॥४२॥ तुह रूवसिरिसरूवं, उवमाईयं मऊहसोहिल्लं । . किर पंचविसइयमं, जिणावयारे कहेइ. जए ॥४३॥ नयरं नरवइणा जह, सग्गो मग्गाहिबेण जह भाई। पामाओ विषेण च, तुमए पहुणा तहा गच्छो ॥४४॥ सोहम्मसामिवसो, छत्तेण व सोहिही उ एएण। इय तुम्ह उत्तमंग, छत्तागारं कयं विहिणा ॥१५॥ सव्वंगसुंदरंग, बाहु सुसाहं करंगुली पत्तं । . नहकिसलयंसि च फलं, सहकारतरुव्व तुह भाइ ॥४६॥ भालस्थलं विसालं, अहमिचंदोवमं सिरी निलयं । पुराणसिरी कीडत्थं, कीडाठाणं कयं विहिणा ॥४७॥ तुह मुहचंदमपुव्वं, विमल कलकला-कलाव-निव्वुदयं । कयसययसिरीवासं, तमोहरं अमियनिज्झरणं ॥४८॥ कय-जगजण-आणंद, गहनिग्गहेउं स[य]लजडिमहरं । स्यणियरो संपिच्छिय, सुत्तं पत्तो जिओ भमइ ॥४९॥ नियबंधव-नियसेवय, केरव-ताराणयेसणं विहियं । लोयण-दसण-मिसेणं, ससिणा तुह सेवणाइ कए ॥५०॥ भइणीव सिरी-वाणी, चिट्ठइ तुह वयण कमलकुलतिलए । सह वेरे · तुम्हाण, अणप्पमाहप्पमिव जयई ॥११॥ कलिकालनिविडकदम-उद्धरिय सगच्छ-सकड-भारस्स । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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