Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh

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Page 112
________________ तुम्हाणं संपत्ते, नवमे वरिसे य जणिय जणहरिसे । सिरिजिणपबोह जुगवर, देसणाघणजलहरो वुट्ठो ॥२०॥ तुम्हाणऽकूखिदेतो, हरिसंकरपूरपूरिओ धणियं ।। गयमवरविसंताबो, जाओ निम्वेयफलामिमुहो ॥२१॥ सिरिजिणपबोहजुगवर-पाए गहिऊण विनवह कुमरो। दाऊण दिकवतरणी, नित्थारह भवसमुदाओ ॥२२॥ युगसिहि वणिदु(१३३२)मिये, बरिसे जिदुस्स सुद्धतइयाए । वय नियपय सिरिजुग्न, जाणित्ता देह दिक्ख गुरू ॥२३॥ एयमित्र खेमकित्ती, वित्थरिही वित्थरा पयललोए । इय विहियं तुह गुरुणा, अमिहाण खेपकित्तित्ति ॥२४॥ सिक्खाचामरजुयलं, गुरुमासण धवलछत्तसोहिल्लं । सीलंगसहसजोहं, पंचमहब्धयगयवरडू (?) ॥२५॥ संजमसिरिगुरुग्ज, अणवजं मयल दुट्ठगहमहणं । गुरुरायमाणपत्त, भुत्तं तुति]मए तुमए जियमएणं ॥२६॥ गुणमणिविजानहजुय, भिसेय विवेयरममुद्दाओ । पुरिसुत्तमेण तुमए, पत्ता पत्तेण विञ्जसिरी !!२७॥ वागरण छंद नाडय, पमाणसिद्धत पमुहविजाओ । लीणा तुम्ह सरीरे, जहा समुद्दे असंखनई ॥२८॥ अह सिरि चरमजिगुत्तम-कमकमलप वित्त विक्कमपुगओ । झाणवलेणं परिभा-विऊण नियआउपन्जंत ॥२९॥ जुगपवर नवनवुच्छव-पवरे जावालि पुरवरे पत्तो । सिरिजिण पबोह गुरुणो, वदिय गुरु विबुह कमकमला ॥३०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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