Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh
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वसह-धवलस्स-मसल-खंघसिरी रेहए ठाणे ॥५२॥ करकमले वसइ सिरी, पासाय छत्त-चामर-धयाई । इय करफरिसे तुम्हाण, तज्जोगो जायई नराण ॥५३॥ हिययश्यणायरे तुह, गहिरिमगुरुए मईनईभरिए। समयामिय आहारे, वसइ सिरिवरजिणा निच्चं ॥५४।। पाया सुरतरुपाया, तुह विहिया विबुह-सेविया विहिणा । नियनिम्मियतिहुअणजण - मणइटुं दाउकामेणा ॥५॥ निरहसए काली तुह, साइसय-ज्झाण-नाणरूवाई । दळूण मिच्छदिट्ठी, न कोवि इह विम्हिओ जाओ ॥५६॥ तुह देसणा रसायण-मणुदिवसं जे नरा अणुहति । ते सम्मदिट्ठी बलिणो, लहंति अजरामरं. ठाण ॥५७।। तुह चउहा धम्मकहा, चउदुग्गइ-चउक्कमाय-निग्गहणं । काऊं जुग जुगवर !, चउजुगवासीण संजाया ॥५८॥ तुह मुहहिमसेलाओ, सरस्सई निस्सप्पवरा । अक्खलिया अच्छेरा, मुत्तिसिरी सग्गसुह-जणया ॥५९।। सिरिकण्णदेव सिरिजित्त-सीह सिरिसमरसीहरायाणो । तुह पयपंकय-छप्पय-लीलं कलयंति गुण सुद्धा ।६०॥ कयजुगजुग्ग सम्वं, कलिम्मि तुद्वेण तुह कवं चिहिणा । कयजुगभावा दीसई, जत्थ तुमं विहरसे नूर्ण ॥६१|| विवपइट्टा-दिक्खा -पयदावण' पमुह पमुह किचेहि । सुप्पसत्था तुहि हत्था, जयम्मि न हवंति? कस्सस्था ॥३२॥ सिरिसत्तुंजय-रेवइ-जिगवर-गुरुतित्थ पमुह तित्थेसु ।
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