Book Title: Dada Shree Jinkushalsuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shravak Sangh

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Page 116
________________ जत्ता जुगल-मिसेणं, पाया दिव-सिक्करा जाया ॥६३॥ देसेसु गुजरत्ता-सु मारवत्ता-सवायलक्खेसु । सिंधु-मरुत्थल--वागड़-दिल्ली देसेसु य विहाण ॥६॥ महिमहिलावच्छत्थल-लच्छी जणया कया तए पहुणे । महुरा गयउरजत्ता, भवरिउजत्ता असुहचत्ता ॥६५॥ लद्धीए सिरिगोयम, रूबाइगुणेहिं क्यरसामिगुरू । मीलेण थूलिभद्दो, पभावणाए सुहत्थी य ॥६६॥ नियआउयपज्जतं, जाणित्ता उण नाणओ तुमए । मेरव रोरखविसमं, आगामियकालमसिक्करं ॥६॥ नियसिस्साणं राइंद-चंदपूरीण मापस्साणं । नियपयजुग्गं सिक्खं, संघसमक्खं कहेऊणं ॥६॥ कायध्वं गुणपवरे, वाणारियकुसलकित्तिगणिसिस्से । जिणकुसलमूरिसुगुरू-त्ति नामपुम्वेव अम्ह पयं ॥६९।। मिच्छादुक्कड़गयवर-मारूढो भाववज्जसन्नाहो । जिणचंदसुगुरुवीरो, अणसणखग्गेण हणिपरिऊ ॥७॥ रिउमुणिसिहिससि१३७६परिमिय बच्छर आसाढसुद्धनवमीए । पत्तो सुरवरलच्छी, पुराउ सिरिकोसवाणाओ ॥७१॥ चंदकुलनहदिवायर :, रयणायर ! मुगुण-पवर रयणेहिं। वाणी मुहा सुहायर !, नमोनमो तुज्झ जुगपवर ! ॥७२॥ मह तुह चरियसमई, वाणी पाणी पहारिया पप्प । धित्तूण गुणजललवं, पायउ भुवणं मया [प]तियं ॥७३॥ सिरिजिणकुसलगुरूहि, जुगवर जिणचंद नियगुरू एवं । परमाए मत्तीए, थुणिओ संघस्स दिसउ सिरिं ॥७४|| इति श्रीजिनचन्द्रमूरि चतुस्सप्ततिका समाप्ता ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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