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दादागुरु देव पूजा साह
मन्त्र
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिन सूरीश्वराय धूपं यजामहे स्वाहा ।।
५-दीपक पूजा।
ने
।
मन सुपात्र गुण वृत्तिकर, सद्गुरु धरम सनेह । ज्ञान उजेला नित करे, दीपक पूजा एह ॥
(तर्ज-जिन मत का डंका आलम में ) अज्ञान तिमिर अति दूर किया,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने । वर ज्ञान प्रकाश प्रचार किया,
गुरु दीपक कशल सूरीश्वर ने । जिनचन्द्र परम गुरु विरह हुआ,
अंधेरा सब जग छाया था। ज्योतिर्मय पद परकाश किया,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने ।
अज्ञान तिमिर० ॥१॥ अति दिच्य सुपंचाचार विधि,
स्वाधीन समाराधन करके ।
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