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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा विनय विधि वर युक्ति से निज जनक जननी आज्ञया । दिव्य उत्सव साधु - पद पाये परम गुरु - सेवया ॥
सुमतिधीर सुनाम विशेष जयो ।
गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥ ४॥ बाल वयमें गुरु - विनय से पुण्य विद्या प्राप्त की। बुद्धि वैभव कीर्ति अपनी सब दिशामें व्याप्त की।
गुरु ज्ञान महान प्रधान जयो।
गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥ ५ ॥ देराउरसे जाते जेशलमेर गुरु माणिक्य वर । स्वर्गवासी होगये निज कीर्ति छोड़गये अमर ॥
सद्गुरु पद सुमतिधीर जयो।
गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥ ६ ॥ युग चंद्र रस भू भादवा सुद वार गुरु नवमी सुखद । श्री गुणप्रभ-मूरिवरने सरिमंत्र दिया विशद ॥
नृप माल महोत्सवकारी जयो।
गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥ ७॥ साधु सुमतिधीर वर विख्यात नाम हुए तभी। गणनाथ श्री जिनचंद्र सूरिराज जय बोलें सभी॥
सुखसागर गुरु भगवान जयो । गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ।। ८ ।।
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