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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा जिन माणिक गुरु राजके, पावनतम पटधार । सद्गुरु श्री जिनचंद की, सेवा सुखभण्डार ॥ ५ ॥ गंगा जल निर्मल गुरु, गुरु चन्दन अनुरूप । गुरु सुमनस विकसित करें, भरे सुवास अनूप ॥ ६ ॥ गुरु ज्योति भविजीवको, गुरु अक्षतपद देत । गुरु भवभूख हरें सदा, गुरु शिवफल संकेत ॥ ७ ॥ गुरु पूजे गुरु गुण मिले जग गौरव बढ जाय । तन्मय हो आराधिये, लट भँवरी के न्याय ॥ ८ ॥
१-जल पूजा।
दहा
द्रव्य भाव जल रूप हैं, सद्गुरु निर्मल आप ।
जल पूजा भवि कीजिये, मिटे त्रिविध सन्ताप ॥१॥ (तर्ज-भिनासर स्वामी अन्तर जामी तारो पारस नाथ )
राग-माढ गुरु ज्ञान की गंगा, सेवो चंगा
भाव सुरंगा धार ।। टेर ॥ श्रीजिन वीर हिमालय पावन, सदगुरु गंग-प्रवाह । गौतम-सौधर्मादिक सेवो, शिवपुर सारथवाह रे ।
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ १ ॥
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