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दादागुरु देव पूजा संग्रह श्रीउद्योतन सद्गुरु चेला, चौरासी गुणवान । चौरासी गच्छ-हेतु उनमें, वर्द्धमान प्रधान रे॥
___ गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ २ ॥ श्री वर्द्धमान गुरुपद सेवी, सूरिजिनेश्वर ओर । बुद्धिसागर सूरि सद्गुरु, ज्ञान-क्रिया गुण जोर रे॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥२॥ पाटण दुर्लभराज सभाग, शिथिलाचारी साध । जीते गुरुने पावन पाया, 'खरतर' विरुद अबाध रे ॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ४ ॥ पटधर श्रीजिनचन्द्र गुरुपद, नवांगवृत्तिकार । अभयदेव पदे जिनवल्लभ, जिनशासन शृंगार रे ॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ५॥ पटधर पहेले दादा श्री जिन-दत्त प्रभाव अमाप । उनके चन्द्रसूरि मणियाले, दूजे दादा आप रे ॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ६॥ पट्ट परंपर तीजे दादा, कुशल कला अभिराम । श्रीजिन कुशल गुरुपद पूजो, पूरे वांछित काम रे।।
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥७॥
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