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दादागुरु देव पूजा संग्रह
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गुरु उपदेश पाकर के, हुए साधु कई साध्वी । उन्हीं की जो गिनी संख्या, अजब आनंद देती है ।
कुशल गुरु० ||५||
हजारों स्त्री पुरुष जिनसे हुए बारह व्रती सच्चे । गुरु उपदेश की शैली, अजय आनंद देती है ।
हजारों मूर्तियों की भी प्रभु की मूर्तियाँ भी वे
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कुशल गुरु० ||६||
प्रतिष्ठा की गुरुवर ने । अजब आनंद देती है ||
कुशल गुरु० ||७||
गुरु के भक्त थे गुरुवर अतः मूर्तियोंकी की । प्रतिष्ठा आज भी उनकी, अजब आनन्द देती है |
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कुशल गुरु० ||८||
गुरु थे आप सुख सागर, गुरु भगवान उपकारी । "हरि" गुरुदेव की पूजा, अजब आनन्द देती है | कुशल गुरु ० ||६||
( काव्यम् )
सदाक्षताचार-विचारकारी,
दादा - भिधानः कुशलाख्य – सूरिः ।
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तत्पाद - पद्मद्वितयं नमामि, तथाक्षतैः साधु नतो यजेऽहम् ॥
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