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तृतीय दादागुरु देव पूजा तत्पाद पद्मद्वितयं नमामि ढौकेऽथ नैवेद्यमहं सुभक्त्या ।।
मंत्रॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिनकुशल
सूरीश्वराय नैवेद्य यजामहे स्वाहा !
८--फल पूजा।
दूहा
परम पुण्य कल्याण फल, दायी श्री गुरुदेव ।
फल पूजा मैं नित करु, सफल सत्य गुरुसेव ॥ ( तर्ज-भवभय हरणा शिव सुख करणा सदाभजो ब्रह्मचारा मैं वारि जाउ) फल पूजा सद गुरुकी करते, प्रगटे अति सुख साता। मैं वारी जाउ प्रगटे अति सुख साता ।। टेर ।। श्रीजिनकुशलसूरीश्वरदादा, मनवांछित फलदाता । मैं वारी जाउ मनवांछित फल दाता ॥ १ ॥ चन्द्र चकोर मोर मन बादल, गुरु भविजन मन भाता । मैं वारि जाउं गुरु भविजन मन भाता ॥२॥
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