Book Title: Daan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 8
________________ दान नहीं जाती थी । अत्यंत दु:ख भुगतते हैं, अर्थात् एक्सेस भी होता है और मीडियम भी रहता है। यहाँ अमरीका में तो उफनता भी है और फिर बैठ भी जाता है और फिर उफनता भी है। बैठ जाने के बाद, फिर से वापिस उफनता है। यहाँ देर नहीं लगती और वहाँ इन्डिया में तो बैठ जाने के बाद उफान आने में बहुत टाइम लगता है। इसलिए वहाँ तो सात-सात पीढ़ी तक चलता था। अब सब पुण्य घट गया है। क्योंकि क्या होता है? कस्तूरभाई के यहाँ जन्म कौन लेगा? तब कहें, ऐसे पुण्यवान जो उनके जैसे ही हों, वे ही वहाँ जन्म लेंगे । फिर उसके यहाँ कौन जन्मे ? वैसा ही पुण्यशाली फिर वहाँ जन्मता है। वह कस्तूरभाई का पुण्य काम नहीं करता। वह फिर दूसरा वैसा आया हो तो फिर उसका पुण्य । इसलिए कहलाती है कस्तूरभाई की पीढ़ी और आज तो ऐसे पुण्यशाली हैं ही कहाँ? अब अभी इन पिछले पच्चीस वर्षों में तो कोई खास ऐसा नहीं है। नहीं तो गटर में बह जाएगा.... पहले तो लक्ष्मी पाँच पीढ़ी तो टिकती, तीन पीढ़ी तो टिकती थी । यह तो लक्ष्मी एक पीढ़ी भी टिकती नहीं। इस काल की लक्ष्मी कैसी है? एक पीढ़ी भी टिकती नहीं। उसकी उपस्थिति में ही आए और उसीकी उपस्थिति में चली जाए, ऐसी यह लक्ष्मी है। यह तो पापानुबंधी पुण्य की लक्ष्मी है। थोड़ी-बहुत उसमें पुण्यानुबंधी पुण्य की लक्ष्मी हो, तो आपको यहाँ आने की प्रेरणा देती है। यहाँ मिलवा देती है और आपसे यहाँ खर्च करवाती है। अच्छे मार्ग से लक्ष्मी जाए, नहीं तो सब धूल में मिल जानेवाला है। सब गटर में चला जाएगा... ये बच्चे हमारी ही लक्ष्मी भोगते हैं न और हम बच्चों से कहें कि तुमने हमारी लक्ष्मी भोगी, तब वे कहेंगे, 'आपकी कैसे? हम हमारी ही भोग रहे हैं', ऐसा कहेंगे। इसलिए, गटर में ही गया न सब ! ६ दान अतिरिक्त बहाओ धर्म के लिए... ये तो लोकसंज्ञा से दूसरों का देखकर सीखते हैं। पर यदि ज्ञानी से पूछें न, तो वे कहें कि 'ना, यह क्यूँ ऐसे इस गड्ढे में गिरते हैं?'... इस दुःख के गड्ढे में से निकला, तब इस पैसों के गड्ढे में गिरा वापिस ?... ज्यादा हों तो डाल दे धर्म में, यहाँ से वही तेरे हिसाब में जमा होता है। और यह बैन्क का जमा नहीं होता। और अड़चन नहीं आएगी तुझे । जो धर्म के लिए देता हो, उसे अड़चन नहीं आती। उसका प्रवाह बदलो खरे समय पर तो एक धर्म ही आपको मदद करके खड़ा रहता है, इसलिए धर्म के प्रवाह में लक्ष्मीजी को जाने देना। केवल एक सुषमकाल में (जब तीर्थंकर भगवान हाज़िर हों) लक्ष्मी मोह करने योग्य थी। वे लक्ष्मीजी तो आई नहीं ! अभी इन सेठों को हार्ट फेल और ब्लड प्रेशर कौन करवाता है ? इस काल की लक्ष्मी ही करवाती है। पैसों का स्वभाव कैसा है? चंचल है। इसलिए आते हैं और एक दिन वापस चले जाते हैं। इसलिए पैसे लोगों के हित के लिए खर्च करने चाहिए। जब आपका खराब उदय आया हो, तब लोगों को दिया हुआ होगा, वही आपको हैल्प करेगा। इसलिए पहले से ही समझना चाहिए। पैसों का सद्व्यय तो करना ही चाहिए न? चारित्र्य से समझदार हुआ कि सारा संसार जीत गया। फिर भले ही सब, जो खाना हो, वह खाए-पीए और अधिक हो, तो खिला दे। दूसरा करने का है क्या?... क्या साथ ले जा पाते हैं ?... जो धन औरों के लिए खर्च किया, उतना ही धन अपना उतनी आनेवाले भव की जमा राशि | इसलिए किसी को आनेवाले जन्म की जमा पूँजी यदि इकट्ठी करनी हो तो धन औरों के लिए खर्च करना। फिर पराया जीव, उसमें कोई भी जीव, फिर वह कौआ हो और वह इतना चख भी गया होगा, तब भी आपकी जमा

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