Book Title: Daan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 13
________________ दान करने चाहिए। लक्ष्मी हो उसे और लक्ष्मी न हो उसे अभयदान का उपयोग करना चाहिए। किसी को भय नहीं हो, उस तरह हमें सँभलकर चलना चाहिए। किसी को दु:ख नहीं हो, भय नहीं हो वह अभयदान कहलाता है। दान के बारे में लोग नाम कमाने के लिए दान देते हैं, वह योग्य नहीं है। नाम कमाने के लिए तो स्मृतिस्थंभ खडे करते हैं न! और स्तंभ किसी के रहे नहीं, और यहाँ दिया हुआ साथ में आता कब है? विद्या फैले, ज्ञान फैले ऐसा कुछ करें, तो वह अपने साथ आता है। उपयोगी हो वह पुस्तक काम की प्रश्नकर्ता : धर्म की लाखों पुस्तकें छपती हैं, पर कोई पढ़ता नहीं है। दादाश्री : वह ठीक है। आपकी यह बात सही है, कोई पढ़ता नहीं। यों की यों पुस्तकें पड़ी रहती हैं सब। जो पढी जाएँ, वैसी पुस्तक हो तो काम की। आपका कहना ठीक है। अभी कोई पुस्तक पढी नहीं जाती। निरी धर्म की ही पुस्तकें छपवाते रहते हैं। वे महाराज क्या कहते हैं? मेरे नाम का छपवाओ। वे महाराज अपना नाम डालते हैं। अपने दादागुरु का नाम डालते हैं। यानी, हमारे दादा ये थे, उनके दादा के दादा और उनके दादा... वहाँ तक पहुँचते हैं। लोगों को कीर्ति कमानी है। और उसके लिए धर्म की पुस्तकें छपवाते हैं। धर्म की पुस्तक ऐसी होनी चाहिए कि ज्ञान हमें काम आए। ऐसी पुस्तक हो तो लोगों को काम आएँ। ऐसी पुस्तक छपी हो वह काम की, नहीं तो यों ही भटकने का क्या अर्थ? और वह भी सब कोई पढ़ते ही नहीं। एक बार पढ़कर रख देते हैं, फिर कोई पढ़ता नहीं है। और एक बार भी कोई पूरा पढ़ता नहीं है। लोगों को काम लगे ऐसा छपवाया हो तो हमारे पैसों का सदुपयोग हो और वह भी पुण्य हो तभी न। पैसे अच्छे हों तभी छपवा सकते हैं, नहीं तो छपवा नहीं सकते। ऐसे संयोग बैठते नहीं न ! पैसे तो आएँगे और जाएँगे और क्रेडिट कभी भी डेबिट हुए बिना रहता नहीं। आपके यहाँ कैसा नियम है? क्रेडिट होता रहता है या डेबिट भी होता है? ____ दान प्रश्नकर्ता : दोनों साइड हैं। दादाश्री : यानी हमेशा क्रेडिट-डेबिट ही हुआ करता है। प्रश्नकर्ता : वही होना चाहिए। दादाश्री : पर उसके दो रास्ते हैं । डेबिट या तो अच्छे रास्ते जाता है या तो गटर में जाता है। पर उसमें से एक रास्ते से जाता है। सारी मुम्बई का धन गटर में ही जाता हैं! सारा धन ही गटर में जाता है... मुम्बई यानी पुण्यवानों का मेला प्रश्नकर्ता : बड़े से बड़े दान मुम्बई में ही होते हैं। लाखों-करोड़ों रुपये दान में दिए जाते हैं। दादाश्री : हाँ, पर वे दान कीर्तिदान हैं सब और कितनी ही अच्छी वस्तएँ भी हैं। औषधदान होता है. ऐसी कई अच्छी वस्तुएँ हैं। यानी दूसरा भी बहुत है मुम्बई में। प्रश्नकर्ता : उन सभी को लाभ मिलता है या नहीं? दादाश्री : बहुत लाभ मिलता है। वे तो छोड़ते नहीं न वह लाभ! पर इस मुम्बई में धन कितना सारा है? इस कारण से तो, यहाँ कितने सारे होस्पिटल हैं। इस मुम्बई का धन ढेर सारा, सागर जितना धन है और वह सागर में ही जाता है। प्रश्नकर्ता : मुम्बई में ही लक्ष्मी मिलती है, उसका क्या कारण है? दादाश्री : मुम्बई में ही लक्ष्मी मिलती है? नियम ही ऐसा है कि मुम्बई में ऊँचे से ऊँची वस्तु खिंचकर आ पड़ती है। प्रश्नकर्ता : वे भूमि के गुण हैं? दादाश्री : भूमि के ही तो। मुम्बई में सभी ऊँचे से ऊँची वस्तुएँ खिंच

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