Book Title: Daan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 18
________________ दान देना चाहिए।' वह गलत है, पर अब हम विचार करते हैं कि 'यह दान करना अच्छा है। इसलिए उसके पहले का मिट जाएगा। दान करना, लोगों पर उपकार करना, ओब्लाइजिंग नेचर रखना, लोगों की सेवा करना, इन सभी को रिलेटिव धर्म कहा है। उससे पुण्य बंधता है। और गालियाँ देने से, मारामारी करने से, लट लेने से पाप बंधता है। पुण्य और पाप जहाँ हैं, वहाँ रियल धर्म ही नहीं है। पाप-पुण्य से रहित रियल धर्म है। दूसरे अवतार में असर करते हैं और ये वाणी से बोला हुआ इस अवतार में असर करता है। वाणी निकली कि नक़द हआ. केश हुआ। इसलिए फल भी केश आता है और मन से चित्रित किया, वह तो अगले अवतार में रुपक बनकर आएगा। और ऐसे जाते हैं अंतराय प्रश्नकर्ता : अर्थात् इतनी जागृति रखनी चाहिए कि जरा-सा भी उलटा-सीधा विचार नहीं हो। दादाश्री : ऐसा हो सके, ऐसा नहीं है। विचार तो ऐसे हुए बिना रहेंगे ही नहीं। उन्हें हम मिटा दें, यही अपना काम। ऐसे विचार नहीं आएँ, ऐसा हम तय करें, वह निश्चय कहलाता है। पर विचार ही नहीं आएँ, ऐसा वहाँ पर चलता नहीं। विचार तो आएँगे पर बंध पड़ने से पहले मिटा देना चाहिए। आपको विचार आया कि 'इसे दान नहीं देना चाहिए।' पर आपको ज्ञान दिया है इसलिए जागृति आएगी कि हमने बीच में अंतराय क्यों डाला? ऐसे फिर आप उसे मिटा दो। पोस्ट में खत डालने से पहले मिटा दो तो हर्ज नहीं न! पर वह तो, ज्ञान बिना कोई मिटाता नहीं न। अज्ञानी तो मिटाता ही नहीं न? उलटे हम उसे ऐसा कहें कि 'ऐसा उलटा विचार क्यों किया?' तब वह कहेगा कि ऐसा तो करना ही चाहिए था, यह आपके समझ में नहीं आएगा। इस तरह फिर ऐसे उसे दोगुना करके मोटा कर देता है। अहंकार सब पागलपन ही करता है, नुकसान करता है, उसका नाम अहंकर। खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारा करे, उसका नाम अहंकार। पाँचवाँ हिस्सा परायों के लिए प्रश्नकर्ता : अगले जन्म के पुण्य के उपार्जन के लिए इस जन्म में क्या करना चाहिए? दादाश्री : इस जन्म में जो पैसे आएँ उसका पाँचवाँ हिस्सा भगवान के यहाँ मंदिर में डाल देना या फिर लोगों के सुख के लिए खर्च करना। इसलिए उतना तो वहाँ ओवरड्राफ्ट पहुँचा ! ये पिछले जन्म के ओवरड्राफ्ट तो भोग रहे हो। इस जन्म का पुण्य है, वह आगे आएगा फिर। अभी की कमाई आगे चलेगी। रिवाज, भगवान के लिए ही धर्म में दान इन मारवाड़ी लोगों के यहाँ जाता हूँ तब पूछता हूँ'धंधा कैसा चलता है?' तब कहें 'धंधा तो अच्छा चलता है।''मुनाफा वगैरा?' तब कहे 'दोचार लाख तो है।''भगवान के यहाँ देना-करना?''बीस-पच्चीस प्रतिशत डाल आते हैं वहाँ, हर साल।' उनका क्या कहना कि खेत में बोएँगे तो दाने निकलेंगे न! बोए बिना दाने किस के लेने जाऊँ? बोएँगे ही नहीं तो? इन मारवाड़ी लोगों के यहाँ यही रिवाज कि भगवान के काम में डालने हैं। ज्ञानदान, भगवान में, दूसरी-तीसरी जगह दान देना और उसमें दान नहीं, हाईस्कूल को, फलों को, उसमें नहीं। बस यही एक। अब तो हम पश्चाताप से सब मिटा सकते हैं और मन में निश्चय कर लें कि ऐसा नहीं बोलना चाहिए। और बोला, 'उसके लिए क्षमा मांगता हूँ', तो मिट जाएगा। क्योंकि वह खत पोस्ट में गया नहीं है। उसके पहले हम परिवर्तन कर डालें कि पहले हमने मन में विचार किया था कि 'दान नहीं

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