Book Title: Daan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 17
________________ दान तोड़कर दिए, कहेगा? उसे वहम न पडे इसलिए। दही भी ले जा। दहीबड़े बन जाएँगे तेरे लिए। अरे! पर क्या करें फिर? यह कुछ तो होना चाहिए न? यह तो पहुँच पाएँ ऐसा नहीं है। और माँगने आए तब भी देना, हाँ। पर नक़द मत देना, वर्ना दुरुपयोग होता है इन सबका। हमारे देश में ही है यह। इस इन्डियन पज़ल को कोई सोल्व कर सकता नहीं सारे संसार में! यह कैसे? यह क्या है? इसे सोल्व करने भेजें कि भैया हमारे यहाँ यह क्या है? ये कम्बल दान में दिए थे, वे कहाँ गए? इसकी खोज करो। तब वे कहें कि सी.आई.डी को लाओ। अरे, यह नहीं है सी.आई.डी का काम। हम तो यह बिना सी.आई.डी के ही पकड लेंगे। यह पज़ल इन्डियन पज़ल है। तुमसे सोल्व नहीं होगा। तुम्हारे देश में सी.आई.डी. से पकड़ लाते हो। हमारे देशवाले क्या करते हैं, वह हम जानते है भई ! दूसरे दिन जा व्यापारी के यहाँ। उपयोग, वह जागृति है। हम शुभ करें, दान दें, वह दान कैसा? जागतिपूर्वक का कि लोगों का कल्याण हो। कीर्ति-नाम हमें प्राप्त नहीं हो, इसलिए गुप्त रूप से देते हैं। यह जागृतिपूर्वक कहलाता है न! वह उपयोग कहलाता है। दूसरे तो, नाम नहीं छपा हो तो दूसरी बार देते नहीं। ऐसा है, शुभमार्ग में भी जागृति कब कहलाती है? इस भव में और परभव में लाभदायी हो, ऐसा शुभ हो, तब वह जागृति कहलाती है। वर्ना, वह दान करता हो, सेवा करता हो, पर आगे की जागृति उसे कुछ भी नहीं होती। जागृतिपूर्वक सभी क्रियाएँ करे तो अगले जन्म का हित होगा, वर्ना नींद में सब जाता है। यह दान किया वह सब नींद में गया! जागते हुए चार आने भी जाएँ तो बहुत हो गया! यह दान दें और भीतर यहाँ की कीर्ति की इच्छा हो, तो वह सब नींद में गया। पर भव के हित के लिए जो दान यहाँ दिया जाए, वह जागृत कहलाता है। हिताहित का भान अर्थात् खुद का हित किस में है और खुद का अहित किस में है और उसके अनुसार जागृति रहे वह! अगले जन्म का कुछ ठिकाना नहीं हो और यहाँ दान करता हो, उसे जागृत कैसे कहा जाए? ऐसे अंतराय पड़ते हैं यह भाई किसी को दान दे रहे हों, वहाँ पर कोई बुद्धिमान कहे कि अरे, इसे क्यों देते हो? तब यह भाई कहेंगे 'अब देने दो न. गरीब है।' ऐसा करके दान देता है और वह गरीब ले लेता है। पर वह बुद्धिमान बोला उसका उसने अंतराय डाला। तो फिर उसे दुःख में भी कोई दाता नहीं मिलता। जहाँ खुद अंतराय डालता है, उस जगह पर ही वह अंतराय काम करता है। इसलिए पैसों में बरकत कब आएगी? कुछ नियम होना चाहिए अथवा नीति होनी चाहिए। साधारण तो होनी चाहिए न? ज़रा काल विचित्र है। तो साधारण नीति तो होनी चाहिए न? यों ही चलता है क्या? सब बेच खाएँ, तब बेटियाँ भी बेच खाते हैं। लक्ष्मी के लिए बेटियाँ भी बेची हैं। वहाँ तक पहुंच गए हैं अंत में ! अरे, ऐसा नहीं करते ऐसा! दान में नकद रुपये नहीं देने चाहिए। उसे मेन्टेनेन्स के लिए हैल्प करना । व्यवसाय पर लगाना। हिंसक मनुष्य को रुपया दोगे तो वह हिंसा अधिक करेगा। दान, लेकिन उपयोगपूर्वक पैसे खर्च हो जाएँगे, ऐसी जागृति रखनी ही नहीं चाहिए। जिस समय जो खर्च हो वह सही। इसलिए पैसे खर्च करने को कहा ताकि लोभ छूटे और बार-बार दे सकें। प्रश्नकर्ता : वाणी से अंतराय नहीं डाले हों, पर मन से अंतराय डालें हों तो? दादाश्री : मन से डाले हुए अंतराय अधिक असर करते हैं। वे तो

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