Book Title: Daan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 14
________________ ____ १७ दान आती हैं। मिरची भी उच्चतम, महान पुरुष, वे भी मुम्बई में होते हैं और नीच से नीच, नालायक मनुष्य, वे भी मुम्बई में होते हैं । मुम्बई में दोनों क्वालिटियाँ होती है। यानी गाँवो में खोजने जाओ तो न मिले। प्रश्नकर्ता : मुम्बई में समदृष्टिवाले लोग हैं न? दादाश्री : सारा पुण्यवानों का मेला है यह। पुण्यवान लोगों का मेला है एक तरह का। और सब पुण्यवान साथ में खिंच आते हैं। मुम्बई के लोग सब निबाह लेते हैं। वे दसरा कछ नहीं करते। और खुद के पैर पर कहीं किसी का जूता आ जाए न. तो प्लीज. प्लीज़ करते हैं। मारते नहीं हैं। प्लीज प्लीज़ करते हैं। और गाँव में तो मारें। इसलिए ये मुम्बई के लोग डेवलप कहलाते हैं। धन चला गटर में लोगों का धन गटर में ही जा रहा है न, अच्छे रास्ते किसी पुण्यवान का ही जाता है न! धन गटर में जाता है क्या? प्रश्नकर्ता : सब जा ही रहा है न! दादाश्री : इस मुम्बई के गटर में तो बहुत सारा धन, जत्थेबंद धन चला गया है। निरा मोह का, मोहवाला बाजार न! तेजी से धन चला जाता है। धन ही खोटा है न! धन भी सच्चा नहीं। सच्चा धन होता है, तो सही रास्ते पर खर्च होता है। अभी सारी दुनिया का धन गटर में जा रहा है। इन गटरों के पाइप चौड़े किए हैं, वह किस लिए कि धन को जाने के लिए स्थान चाहिए न? कमाया हुआ सब खा-पीकर, बहकर गटर में सब जाता है। एक पैसा सच्चे मार्ग पर जाता नहीं, और जो पैसे खर्चते हैं, कॉलेज में दान दिया, फलाँ दिया, वह सब इगोइज़म है। इगोइजम बिना का पैसा जाए तो वह सच्चा कहलाता है। बाकी यह तो अहंकार को पोषण मिलता रहता है, कीर्ति मिलती रहती है आराम से। पर कीर्ति मिलने के बाद उसका फल आता है। फिर वह कीर्ति जब पलट जाए तब क्या होता है? अपकीर्ति होती है। तब उपाधी ही उपाधी हो जाती है। इसके बजाय कीर्ति की आशा ही नहीं रखनी चाहिए। कीर्ति की आशा रखें, तब अपकीर्ति आए न? जिसे कीर्ति की आशा नहीं, उसे अपकीर्ति आए ही क्यों? अच्छे रास्ते खर्च करो पैंसे तो खाली भी हो जाएँ और घड़ी में भर भी जाएँ। अच्छे काम के लिए राह मत देखना। अच्छे काम में खर्च हो, नहीं तो गटर में तो गया लोगों का धन। मुम्बई में करोड़ो रुपये गटर में गए लोगों के, घर में खर्च किया और परायों के लिए जो खर्च नहीं किया वह सारा गटर में गया। तो अब पछताते हैं। मैं कहता हूँ कि गटर में गया, तब कहते हैं कि 'हाँ, ऐसा ही हुआ।' तब मुए! पहले से ही सावधान रहना था न? अब फिर से आए तब सावधान रहना। तब कहें, 'हाँ, फिर से अब कच्चा नहीं पढूंगा।' फिर तो आने ही वाला है न! धन तो घटता-बढता रहेगा। कभी दो वर्ष खराब जाएँ, फिर पाँच साल अच्छे आएं, ऐसा चलता रहता है। पर अच्छे रास्ते पर खर्च किया, वह तो काम आएगा न? उतना ही अपना, बाकी सब पराया। इतना सारा कमाया, पर कहाँ गया? गटर में। धर्म के लिए दिया? तब कहेगा, वो पैसे तो मिलते ही नहीं, इकट्ठे होते ही नहीं तो हूँ किस तरह? तब धन कहाँ गया? यह तो कौन उगाता है और कौन खाता है? जो कमाता है, उसका धन नहीं। जो खर्चे उसका धन। इसलिए नये ओवरड्राफ्ट भेजे वे आपके। नहीं भेजे तो आप जानो। दान अर्थात् बोकर काटो प्रश्नकर्ता : आत्मा और दान में कोई संबंध नहीं है तो फिर यह दान करना ज़रूरी है या नहीं?

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