Book Title: Daan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 7
________________ दान संस्था हो और लक्ष्मी का धर्म में सदुपयोग होता हो तो वहाँ दो। दुरुपयोग होता हो वहाँ मत दो, दूसरी जगह पर देना। पैसा सदुपयोग में जाए, ऐसा खास ध्यान रखो। नहीं तो आपके पास पैसे अधिक होंगे, तो वे आपको अधोगति में ले जाएँगे, इसलिए उन पैसों का कहीं भी सदुपयोग कर डालो। लेकिन धर्माचार्यों को पैसे लेने नहीं दादाश्री : लक्ष्मी तो टिके ऐसी है ही नहीं, पर उसका रास्ता बदल देना चाहिए। वो जिस रास्ते जाती है, उसका प्रवाह बदल डालना और धर्म के रास्ते पर मोड़ देना। वह जितनी सुमार्ग पर गई, उतनी खरी। भगवान आएँ, फिर लक्ष्मी टिकती है, उसके बिना लक्ष्मी टिके कैसे? भगवान हों. वहाँ क्लेश नहीं होता और अकेली लक्ष्मीजी हों तो क्लेश और झगड़े होते हैं। लोग लक्ष्मी ढेर सारी कमाते हैं, पर वह बरबाद होती है। किसी पुण्यशाली के हाथों लक्ष्मी अच्छे रास्ते खर्च होती है। लक्ष्मी अच्छे रास्ते खर्च हो, वह बहुत भारी पुण्य कहलाता है। चाहिए। सन् १९४२ के बाद की लक्ष्मी में कोई सार ही नहीं है। अभी लक्ष्मी यथार्थ जगह खर्च नहीं होती है। यथार्थ जगह खर्च हो, तो बहुत अच्छा कहलाए। मोड़ो लक्ष्मी, धर्म की ओर पैसे संभालना, वह तो बहुत मुश्किल है! इससे तो कम कमाएँ वह अच्छा। यहाँ बारह महीने में दस हजार कमाए और एक हजार भगवान के यहाँ रख दें, तो उसे कोई उपाधी नहीं है। कोई लाखों दे, और यह हज़ार दे, दोनों एक जैसे, पर हज़ार भी, कुछ देने चाहिए। मेरा क्या कहना है कि कुछ न दो, ऐसा मत रखना, कम में से भी कुछ देना और अधिक हो और वह धर्म की ओर मुड़ गया, फिर अपनी जिम्मेदारी नहीं, नहीं तो जोखिम है। बहुत पीड़ा वह तो। पैसे संभालने, यानी बहुत मुश्किल। गायें, भैंसे संभालना अच्छा, खुंटे पर बाँध दी तो सुबह तक चली तो नहीं जातीं। पर पैसें सँभालना बहुत मुश्किल है। मुश्किल, उपाधी सारी... क्यों नहीं टिकती, लक्ष्मी? प्रश्नकर्ता : मैं दस हजार रुपये महीना कमाता हूँ, पर मेरे पास लक्ष्मीजी टिकती क्यों नहीं? दादाश्री : सन् १९४२ के बाद की लक्ष्मी टिकती नहीं है। यह लक्ष्मी है, वह पाप की लक्ष्मी है, इसलिए टिकती नहीं है। अब से दो-पाँच साल के बाद की लक्ष्मी टिकेगी। हम ज्ञानी हैं, फिर भी लक्ष्मी आती है, पर टिकती नहीं है। यह तो इन्कमटैक्स भर सकें, उतनी लक्ष्मी आए तो हो गया। प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी टिकती नहीं है, तो क्या करें? सात पुश्तों तक टिके लक्ष्मी.... प्रश्नकर्ता : जैसे इन्डिया में कस्तूरभाई लालभाई की पीढ़ी है, तो वह दो, तीन, चार पीढ़ी तक पैसे चलते रहते हैं, उनके बच्चों के बच्चों तक। जब कि यहाँ अमरीका में कैसा है कि पीढ़ी होती है, पर बहुत हुआ तो छहआठ वर्ष में सब खतम हो जाता है। या तो पैसे हों तो चले जाते हैं और नहीं हों तो पैसे आ भी जाते हैं। तो उसका कारण क्या होगा? दादाश्री : ऐसा है न, वहाँ का जो पुण्य है न, इन्डिया का पुण्य, वह पुण्य इतना चिकना होता है कि धोते रहें, फिर भी जाता नहीं और पाप भी ऐसे चिकने होते हैं कि धोते रहें, फिर भी जाते नहीं। इसलिए. वैष्णव हो या जैन हो, पर उसने पुण्य इतना मज़बूत बाँधा हुआ होता है कि धोते रहें फिर भी जाता नहीं। जैसे की पेटलाद के दातार सेठ, रमणलाल सेठ की सातसात पीढ़ियों तक सम्पन्नता रही। फावड़ों से खोद-खोदकर धन दिया करते थे लोगों को, फिर भी कभी कमी नहीं आई। उन्होंने पुण्य जबरदस्त बाँधा था, सचोट। और पाप भी ऐसे सचोटबाँधते थे, सात-सात पीढ़ी तक गरीबी

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