Book Title: Daan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 10
________________ दान दान समझ में आया आपको? किस में फायदा अधिक? अन्नदान अच्छा या औषधदान? प्रश्नकर्ता : औषधदान। दूसरा कुछ उदय होगा, आपको फिकर करने की ज़रूरत नहीं। प्रश्नकर्ता : अन्नदान श्रेष्ठ माना जाता है? दादाश्री : अन्नदान अच्छा माना जाता है, पर अन्नदान कितना दे सकते हैं? कुछ सदा के लिए देते नहीं हैं न लोग। एक पहर खिला सके तो बहुत हो गया। दूसरा पहर फिर मिल आएगा। पर आज का दिन, एक पहर भी तू जीवित रहा न! अब इसमें भी लोग बचा-खचा ही देते हैं या नया बनाकर देते हैं? प्रश्नकर्ता : बचा हुआ हो, वही देते हैं, अपनी जान छुड़ाते हैं। बच गया तो अब क्या करे? दादाश्री: फिर भी उसका सदपयोग करते हैं, मेरे भाई। पर नया बनाकर दें, तब मैं कहूँ कि करेक्ट है। वीतरागों के यहाँ कोई कानून होगा या गप्प चलेगी? प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं, गप्प होती होगी? दादाश्री : वीतरागों के यहाँ नहीं चलता, दूसरी सब जगह चलता है। औषधदान दादाश्री : औषधदान को आहारदान से अधिक क़ीमती माना है। क्योंकि वह दो महीने भी जीवित रखता है। मनुष्य को अधिक समय जीवित रखता है। वेदना में से थोड़ी-बहुत मुक्ति दिलवाता है। बाकी अन्नदान और औषधदान तो हमारे यहाँ सहज ही औरतें और बच्चे सभी करते रहते हैं। वह कोई बहुत क़ीमती दान नहीं है, पर करना चाहिए। ऐसा कोई हमें मिल जाए, तब हमारे यहाँ कोई दुःखी मनुष्य आया, तो उसे जो तैयार हो वह तुरन्त दे देना। ऊँचा ज्ञानदान फिर उससे आगे ज्ञानदान कहा है। ज्ञानदान में पुस्तकें छपवानी, लोगों को समझाकर सच्चे रास्ते पर ले जाएँ और लोगों का कल्याण हो, ऐसी पुस्तकें छपवानी आदि वह, ज्ञानदान । ज्ञानदान दें, तो अच्छी गतियों में, ऊँची गतियों में जाता है या फिर मोक्ष में भी जाता है। इसलिए मुख्य वस्तु ज्ञानदान भगवान ने कहा है और जहाँ पैसों की जरूरत नहीं है, वहाँ अभयदान की बात कही है। जहाँ पैसों का लेन-देन है, वहाँ पर ये ज्ञानदान का कहा है और साधारण स्थिति, नरम स्थिति के लोगों को औषधदान और आहारदान, दो का कहा है। प्रश्नकर्ता : पर पैसे बचे हों, वह उसका दान तो करे न? दादाश्री : दान तो उत्तम है। जहाँ दुःख हो वहाँ दु:खों को कम करो और दूसरा सन्मार्ग पर खर्च करना। लोग सन्मार्ग पर जाएँ ऐसा ज्ञानदान करो। इस दुनिया में ऊँचा ज्ञानदान है। आप एक वाक्य जानो तो आपको और दूसरा औषधदान, वह आहारदान से उत्तम माना जाता है। औषधदान से क्या होता है? साधारण स्थिति का मनुष्य हो, वह बीमार पड़ा हो और अस्पताल में जाता है। और वहाँ कोई कहे कि अरे डॉक्टर ने कहा है, पर दवाई लाने को पचास रुपये मेरे पास नहीं हैं, इसलिए दवाई किस तरह लाऊँ? तब हम कहें कि ये पचास रुपये दवाई के और दस रुपये दूसरे। या तो औषध उसे हम मुफ्त दें कहीं से लाकर । हमें पैसा खर्च करके औषध लाकर फ्री ऑफ कॉस्ट (मुफ्त) देनी। तो वह औषध ले तो बेचारा चार-छह साल जीएगा। अन्नदान की तुलना में औषधदान से अधिक फायदा है।

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