Book Title: Chhahadhala
Author(s): Daulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
Publisher: B D Jain Sangh

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Page 4
________________ वक्तव्य प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश भाषाओंमें जैन लेखकोंने जिस प्रकार गद्य-पद्य रूपमें सुन्दर रचनाएँ की हैं, उसी प्रकार हिन्दी भाषामें भी जैन-विद्वानोंके बनाये हुए अनेक सुन्दर ग्रन्थ उपलब्ध हैं। स्व० पं० बनारसीदासजीका नाटक 'समयसार' पं० भूधरदासजीका 'पार्श्वपुराण' आदि ग्रन्थ हिन्दी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। जैन ग्रन्थकारोंने शृङ्गारकी अपेक्षा शान्त वैराग्यरसको अधिक अपनाया है तथा अन्य विषयविवेचनकी अपेक्षा जैन-सिद्धान्तके प्रतिपादनको विशेषता दी है। इसी परम्पराका अनुकरण विक्रमीय उन्नीसवीं शताब्दीके अन्तिम चरणवर्ती स्व० पं० दौलतरामजीने भी किया है। __ श्री पं० दौलतरामजी अलीगढ़के समीप सासनीके रहनेवाले थे, पीछे वे अलीगढ़में रहने लगे थे। वे पल्लीवाल जातिके नर-रत्न थे। उन्होंने परमार्थ जकड़ी, फुटकर अनेक पद तथा प्रस्तुत ग्रन्थ छहढालाका निर्माण किया है। उन्होंने अपनी कवितामें सरल ललित शब्दों द्वारा सागरको गागरमें भरनेका प्रयत्न किया है। जहां उनके शब्द रुचिर हैं वहां उनका भाव उनसे भी अधिक उल्लास देनेवाला है। उनके बनाये हुए पदोंका भाव मनन करते हुए हृदयमें शान्ति और आनंदकी हिलोरें आने लगती हैं। ___ प्रस्तुत ग्रन्थ छहढाला भी जिसका कि वास्तविक नाम 'तत्व-उपदेश' है, एक सुन्दर रचना है। इसमें भी कविने अपनी सहज चातुरीसे जैनसिद्धान्तका आध्यात्मिक सार भर दिया है जो कि जैनसिद्धान्तके जिज्ञासुओंके लिये बहुत उपयोगी है। इस ग्रन्थकी काया ६ प्रकारके विभिन्न छन्दोंमें सम्पन्न हुई है, अतएव इसका नाम भी पं० बुधजन कृत छहढालाके नामानुसार 'छहढाला' रूढ़ हो गया है। (ढाल=छन्द उच्चारणकी चाल, छह+ढाल छहढाला)

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