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छेदसुत्ताणि
. (४) मल-मूत्र त्यागने के स्थान में जाना,
(५) स्वाध्याय करना, (६) कायोत्सर्ग करना, (७) शीर्षासन आदि आसन करना नहीं कल्पता है।
यदि वहाँ पर नये आए हुए या समीप में बैठे हुए एक या दो-तीन मुनि हों तो उन्हें इस प्रकार कहना कल्पता है
. "हे आर्य ! धूप में सुखाये हुए इन वस्त्र-पात्र, कम्बल, पैर पोंछना या अन्य .. कोई भी उपकरण हो-इनकी और मुहूर्त पर्यन्त या जब तक
(१) गृहस्थों केघरों में आहार पानी के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करूँ, (२) अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पदार्थों का आहार करूँ, (३) उपाश्रय के बाहर स्वाध्याय स्थल में जाऊँ या (४) मल-मूत्र त्यागने के स्थान में जाऊँ, (५) स्वाध्याय करूं, (६) कायोत्सर्ग करूँ,
(७) शीर्षानादि आसन करूँ तब तक देखते रहना। इन्हें कोई किसी प्रकार की हानि न पहुंचा पाए ।
यदि वे भिक्षु का उक्त कथन सुनले (घूप में सुखाये गये वस्त्रादि की सुरक्षा का उत्तरदायित्व स्वीकार कर लें) तो,
(१) उसे गृहस्थों के घरों में आहार-पानी के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना, (२) अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पदार्थों का आहार,करना, (३) उपाश्रय से बाहर स्वाध्याय स्थल में जाना या (४) मल-मूत्र त्यागने के स्थान में जाना, (५) स्वाध्याय करना, (६) कायोत्सर्ग करना, (७) शीर्षासनादि आसन करना कल्पता है । यदि वे भिक्षु का उक्त कथन न सुनें तो(१) उसे गहस्थों के घरों में आहार पानी के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना, (२) अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पदार्थों का आहार करना, (३) उपाश्रय के बाहर स्वाध्याय स्थल में जाना या (४) मल-मूत्र त्यागने के स्थान में जाना (५) स्वाध्याय करना (६) कायोत्सर्ग करना और (७) शीर्षासनादि आसन करना नहीं कल्पता है । ८/६६ ।।