Book Title: Ched Suttani Aayar Dasa
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: Aagam Anyoug Prakashan
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१६०
छेदसुत्ताणि
पढमं णियाणं
सूत्र २२
एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-इणमेव निग्गंथे पावयणे,
सच्चे, अणुत्तरे, पडिपुण्णे, केवले, संसुद्धे, णेआउए, सल्लकत्तणे, सिद्धिमग्गे, मुत्तिमगे, निज्जाणमग्गे, निव्वाणमग्गे, अवितहमविसंदिद्धे, सव्व-दुक्खप्पहीणमग्गे । इत्थं ठिया जीवा, सिझंति, बुझंति, मुच्चंति, परिनिव्वायंति, सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे, पुरा दिगिच्छाए, पुरा पिवासाए, .
पुरा सीताऽऽतहिं पुरा पुट्ठहिं विरूवरूवेहि परीसहोवसग्गेहि उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा,
से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जाजे इमे उग्गपुत्ता महा-माउया भोगपुत्ता महा-माउया.
तेसि णं अण्णयरस्स अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी-दास-किंकर-कम्मकर-पुरिसपदाति-परिक्खित्तं, छत्तं भिंगारं गहाय निग्गच्छंतं;
तयाणंतरं च णं पुरओ महाआसा आसवरा, उभओ तेसि नागा नागवरा, पिट्टओ रहा रहवरा रहसंगल्लि, से तं उद्धरिय-सेय-छत्ते, अब्भुगये भिंगारे, पग्गहिय तालियंटे, पवीयमाण-सेय-चामर-बालवीयणीए, अभिक्खणं अभिक्खणं अतिजाइ य निज्जाइ य ; सप्पभा सपुव्वावरं च णं, हाए, कय-बलिकम्मे जाव-सव्वालंकारविभूसिए, महति महालियाए कूडागारसालाए, महति महालयंसि सिंहासणंसि जाव
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