Book Title: Ched Suttani Aayar Dasa
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: Aagam Anyoug Prakashan

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Page 182
________________ १६२ छेवसुत्तानि का प्रबल उदय हो जाए और वह उद्दिप्त काम वासना के शमन के लिए (तप संयम की उग्र साधना रूप) प्रयत्न करे। उस समय वह विशुद्ध मातृ-पितृ पक्ष वाले किसी उग्रवंशीय या भोगवंशीय राजकुमार को आते-जाते देखता है। ___ छत्र और झारी लिए हुए अनेक दास-दासी किंकर कर्मकर और पदाति . पुरुषों से वह राजकुमार घिरा रहता है। उसके आगे-आगे उत्तम अश्व दोनों और गजराज और पीछे-पीछे श्रेष्ठ सुसज्जित रथ चलते हैं। एक दास श्वेत छत्र ऊँचा उठाये हुए, एक झारी लिये हुए, एक ताड़पत्र का पंखा लिये, एक श्वेत चामर डुलाते हुए और अनेक दास छोटे-छोटे पलं लिये हुए चलते हैं। इस प्रकार वह अपने प्रासाद में बार-बार आता-जाता है। दैदिप्यमान कान्ति वाला वह राजकुमार यथासमय स्नान बलिकर्म यावत् सब अलंकारों से विभूषित होकर सारी रात दीप ज्योति से जगमगाने वाली विशाल कूटागार शाला (राजप्रासाद) में सर्वोच्च सिंहासन पर बैठता है...यावत्...वनितावृन्द से घिरा रहता है। __ वह कुशल नर्तकों का नृत्य देखता है, गायकों का गीत सुनता है और वादकों द्वारा बजाए गये वीणा, त्रुटित, घन, मृदंग, मादल आदि वाद्यों की मधुर ध्वनियां सुनता है-इस प्रकार वह मानुषिक कामभोगों को भोगता है। __वह (किसी कार्य के लिए) एक दास को बुलाता है तो चार-पांच दास बिना बुलाए ही आते हैं-वे पूछते हैं—हे देवानुप्रिय ! हम क्या करें, क्या लावें, क्या अर्पण करें और क्या आचरण करें ? आपकी हार्दिक अभिलाषा क्या है ? आपको कौनसे पदार्थ प्रिय हैं ? उसे देखकर निर्ग्रन्थ निदान करता है । यदि मेरे तप, नियम एवं ब्रह्मचर्य-पालन का फल हो तो मैं भी (उस राजकुमार जैसे) मानुषिक काम-भोग भोगू । सूत्र २३ एवं खलु समाणाउसो ! निग्गंथे णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइए अप्पडिक्कते अणिदिए अगरिहिए अविउट्टिए अविसोहिए अकरणाए अणब्भुट्टिए अहारिए पायच्छित्तं तवोकम्मं अपडिवज्जित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति महड्ढिएसु जाव-चिरदितिएंसु ।

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