Book Title: Ched Suttani Aayar Dasa
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: Aagam Anyoug Prakashan

Previous | Next

Page 204
________________ १८४ हंता ! पव्वज्जा से णं तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झेज्जा, जाव- सम्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा ? जो तिट्ठे समट्ठे । से णं भवति से जे अणगारा भगवंतो इरियासमिया, भासासमिया जाव - बंभयारी । ते णं विहारेणं विहरमाणे बहूइं वासाइं परियागं पाउणइ । पाउणित्ता आबाहंसि वा उपपन्नंसि वा जाव भत्ता पच्चक्खा एज्जा ? हंता ! पच्चवखाएज्जा । बहूई भत्ताइं अणसणाई छेदिज्जा ? हंता ! छेदिज्जा । छेवसुताणि आलोइए पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसुं देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति । हे आयुष्मान् श्रमणो ! निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी निदान - शल्यं पाप की आलोचना प्रतिक्रमण किये बिना (शेष वर्णन पूर्व के समान )... यावत् ... प्रश्न – क्या वह गृहस्थ जीवन छोड़कर एवं मुंडित होकर अनगार प्रव्रज्या स्वीकार कर सकता है ? उत्तर - हां वह अनगार प्रव्रज्या स्वीकार कर सकता है । प्रश्न – क्या वह उसी भव में सिद्ध हो सकता है ?... यावत्... सब दुःखों का अन्त कर सकता है ? उत्तर - यह संभव नहीं है । वह अनगार भगवंत इर्यासमिति - यावत्ब्रह्मचर्य का पालन करता है, इस प्रकार वह अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन बिताता है । प्रश्न - रोग उत्पन्न हो या न हो ... यावत्... वह भक्त - प्रत्याख्यान करता है ? उत्तर -- हाँ, वह भक्त प्रत्याख्यान करता है । प्रश्न -- क्या वह अनेक दिनों तक (आहार छोड़ कर ) अनशन करता है । उत्तर - हाँ, वह अनशन करता है, आलोचना एवं प्रतिक्रमण... यावत् ... दोषानुसार प्रायश्चित्त करके जीवन के अन्तिम दिनों में शरीर छोड़कर किसी एक देवलोक में देव होता है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210