Book Title: Ched Suttani Aayar Dasa
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: Aagam Anyoug Prakashan

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Page 184
________________ १६४ छेवसुत्ताणि से गं पडिसुणेज्जा ? णो इणठे समझें! अभविए णं से तस्स धम्मस्स सवणाए। से य भवइ महिच्छे, महारंभे, महा-परिग्गहे, अहम्मिए जाव-दाहिणगामी नेरइए, आगमिस्साए दुल्लहबोहिए या वि भवइ । प्रश्न-उस पूर्व वर्णित पुरुष को तप-संयम के मूर्तरूप श्रमण-ब्राह्मण केवलि-प्ररूपित धर्म का उभय काल (प्रातः-सायं) उपदेश करते हैं ? उत्तर-नहीं, वह श्रद्धा पूर्वक नहीं सुनता है अत: वह धर्म श्रवण के अयोग्य है। वह अनन्त इच्छाओं वाला महारंभी-महापरिग्रही अधार्मिक...यावत्... दक्षिण दिशावर्ती नरक में नैरयिक रूप में उत्पन्न होता है। भविष्य में उसे. बोध (सम्यक्त्व) की प्राप्ति दुर्लभ होती है। सूत्र २५ तं एवं खलु समणाउसो ! तस्स णियाणस्स इमेयासवे फल-विवागे, जं णो संचाएइ केवलि-पण्णत्तं धम्म पडिसुणित्तए। हे आयुष्मान् श्रमणो ! उस निदान शल्य का ही यह विपाक है। इसलिए वह केवलि प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण नहीं कर सकता है । बिइयं णियाणं सूत्र २६ एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते, तं जहाइणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी, पुरा दिगिछाए जाव-उदिण्ण-काम-जाया विहरेज्जा, सा य परक्कमेज्जा; सा य परक्कममाणी पासेज्जासे जा इमा इत्थिया भवइ एगा, एगजाया एगाभरण-पिहाणा, तेल्ल-पेला इ वा सुसंगोपिता, चेल-पेला इ वा सुसंपरिगहिया, रयण करंडकसमाणी,

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