Book Title: Ched Suttani Aayar Dasa
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: Aagam Anyoug Prakashan

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Page 199
________________ आयारबसा १७६ वह आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर देवलोक से च्यव कर किसी कुल में उत्पन्न होता हैं। (पूर्व के समान वर्णन कहना चाहिये देखें पृष्ठ १६३) विशेष प्रश्न-वह केवलिप्रज्ञप्त धर्म पर श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि रखता है ? उत्तर-हाँ वह केवलि प्रज्ञप्त धर्म पर श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि रखता है ? प्रश्न-क्या वह शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान, पोषधोपवास करता है ? उत्तर-यह संभव नहीं है। वह केवल दर्शन-श्रावक होता है । जीवअजीव के यथार्थ स्वरूप का ज्ञाता होता है...यावत्...अस्थि एवं मज्जा में धर्म के प्रति अनुराग होता है । हे आयुष्मान् ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही जीवन में इष्ट है । यही परमार्थ है । अन्य सब निरर्थक है। ___ वह इस प्रकार अनेक वर्षों तक आगार धर्म की आराधना करता है । जीवन के अन्तिम क्षणों में किसी एक देवलोक में देव रूप उत्पन्न होता है। . सूत्र ४१ एवं खलु समणाउसो ! तस्स.णियाणस्स इमेयारवे पावए फलविवागेजंणो संचाएति सीलव्वय-गुणव्यय-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं पडिवज्जित्तए। __ इस प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणो ! ऊस निदान का यह पाप रूप विपाक फल है, जिससे वह शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास नहीं कर सकता है। अट्ठमं णियाणं सूत्र ४२ एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते-तं चेव सव्वं । जावसे य परक्कममाणे दिव्वमाणुस्सएहि कामभोगेहि णिग्वेदं गच्छेज्जा "माणुस्सगा कामभोगा अधुवा जाव-विप्पजहणिज्जा; विश्वा वि खलु कामभोगा अधुवा, अणितिया, असासया, चलाचलणधम्मा, पुणरागमणिज्जा पच्छापुव्वं च णं अवस्सं विप्पजहणिज्जा।" जइ इमस्स तव-नियमस्स जाव-अहमवि आगमेस्साए जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया

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