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आयारदसा
सूत्र ४४
तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स वि जाव-पडिसुणिज्जा ? हंता! पडिसुणिज्जा। से णं सद्दहेज्जा ? हंता ! सद्दहेज्जा। से णं सील-वय जाव-पोसहोववासाइं पडिवज्जेज्जा ? हंता ! पडिवज्जेज्जा। से णं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वएज्जा ? णो तिणठे समझें।
प्रश्न- क्या ऐसे पुरुष को भी श्रमण-ब्राह्मण केवलिप्रज्ञप्त धर्म का उपदेश सुनाते हैं ?
उत्तर-हां सुनाते हैं ? प्रश्न- क्या वह सुनता है ? उत्तर--हां वह सुनता है। प्रश्न- क्या वह श्रद्धा करता है। उत्तर-हां वह श्रद्धा करता है । प्रश्न--क्या वह शीलवत, पौषधोपवास स्वीकार करता है ? उत्तर-हां वह स्वीकार करता है ।
प्रश्न--क्या वह गृहस्थ को छोड़कर मुण्डित होता है एवं अनगार प्रव्रज्या स्वीकार करता है ?
उत्तर-यह संभव नहीं है ।
सूत्र ४५
से गं समणोवासए भवतिअभिगय-जीवाजीवे जाव-पडिलामेमाणे विहरइ । से णं एयारवेण विहारेण विहरमाणे बहूणि वासाणि समणोवासग-परियागं पाउणइ
पाउणित्ता आबाहंसि उप्पन्नंसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहुइं भत्ताइ पच्चक्खाएज्जा?
हंता, पच्चक्खाएज्जा,