Book Title: Ched Suttani Aayar Dasa
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: Aagam Anyoug Prakashan

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Page 190
________________ छेदसुत्ताणि प्रश्न - उस ( पूर्व वर्णित ) स्त्री को तप-संयम की प्रति मूर्ति रूप श्रमणब्राह्मण... यावत् .... धर्मोपदेश सुनाते हैं ? १७० उत्तर - हाँ सुनाते हैं । प्रश्न – क्या वह ( श्रद्धा पूर्वक) सुनती है ? उत्तर— नहीं सुनती है । क्योंकि वह केवलिप्रज्ञप्त धर्म श्रवण के लिए अयोग्य है । वह उत्कट अभिलाषाओं वाली... यावत्... दक्षिण दिशावर्ती नरक में नैरयिक रूप में उत्पन्न होती है । भविष्य में उसे बोध ( सम्यक्त्व ) की प्राप्ति दुर्लभ होती है । आयुष्मान् श्रमणो ! उस निदान का यह पापरूप विपाक - फल होता है - इसलिए वह केवलि - प्ररूपित धर्म को नहीं सुन सकती है । चउत्थं णियाणं सूत्र ३३ एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते इणमेव णिग्गंथे पावयणे सच्चे, सेसं तं चैव जाव - अंतं करेति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्टिया विहरमाणी पुरा बिगिंछाए पुरा जाव - उदिष्णकाम जाया या वि विहरेज्जा । साय परक्कमेज्जा, सा य परक्कममाणी पासेज्जा जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाया तेसि णं अण्णयरस्स अइजायमाणे वा जाव ""क ते आसगस्स सदति ?" जं पासित्ता निग्गंथी णिदाणं करेति "दुक्खं खलु इत्थित्तणए, दुस्संचराई गामंतराई जाव - सन्निवेसंतराइं । 'जहानामए अंब-पेसियाइ वा, मातुलिंगपेसियाइ वा अंबाड-पेसियाइ वा, मंसपेसियाइ वा, उच्छ्रखंडियाइ वा, संबलि- फालियाइ वा, बहुजणस्स आसायणिज्जा, पत्थणिज्जा, पीहणिज्जा, अभिलसणिज्जा । एवमेव इथिका वि बहुजणस्स

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