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छेदसुत्ताणि
प्रश्न - उस ( पूर्व वर्णित ) स्त्री को तप-संयम की प्रति मूर्ति रूप श्रमणब्राह्मण... यावत् .... धर्मोपदेश सुनाते हैं ?
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उत्तर - हाँ सुनाते हैं ।
प्रश्न – क्या वह ( श्रद्धा पूर्वक) सुनती है ?
उत्तर— नहीं सुनती है । क्योंकि वह केवलिप्रज्ञप्त धर्म श्रवण के लिए अयोग्य है ।
वह उत्कट अभिलाषाओं वाली... यावत्... दक्षिण दिशावर्ती नरक में नैरयिक रूप में उत्पन्न होती है । भविष्य में उसे बोध ( सम्यक्त्व ) की प्राप्ति दुर्लभ होती है ।
आयुष्मान् श्रमणो ! उस निदान का यह पापरूप विपाक - फल होता है - इसलिए वह केवलि - प्ररूपित धर्म को नहीं सुन सकती है ।
चउत्थं णियाणं
सूत्र ३३
एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते
इणमेव णिग्गंथे पावयणे सच्चे,
सेसं तं चैव जाव - अंतं करेति ।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्टिया विहरमाणी पुरा बिगिंछाए पुरा जाव - उदिष्णकाम जाया या वि विहरेज्जा ।
साय परक्कमेज्जा,
सा य परक्कममाणी पासेज्जा
जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया
भोगपुत्ता महामाया
तेसि णं अण्णयरस्स अइजायमाणे वा जाव
""क ते आसगस्स सदति ?"
जं पासित्ता निग्गंथी णिदाणं करेति
"दुक्खं खलु इत्थित्तणए,
दुस्संचराई गामंतराई जाव - सन्निवेसंतराइं ।
'जहानामए अंब-पेसियाइ वा, मातुलिंगपेसियाइ वा अंबाड-पेसियाइ वा, मंसपेसियाइ वा, उच्छ्रखंडियाइ वा, संबलि- फालियाइ वा,
बहुजणस्स आसायणिज्जा, पत्थणिज्जा, पीहणिज्जा, अभिलसणिज्जा । एवमेव इथिका वि बहुजणस्स