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________________ आयारसा १६९ __से गं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं द्वितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता अण्णतरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति । जाव-ते णं तं दारियं-जाव-भारियत्ताए दलयंति । सा णं तस्स भारिया भवति एगा एगजाया। जाव-तहेव सव्वं भाणियव्वं । तीसे गं अतिजायमाणीए वा निज्जायमाणीए वा जाव-"कि ते आसगस्स सदति ?" हे आयुष्मान् श्रमणो ! वह निर्ग्रन्थ निदान करके उस निदान शल्य की आलोचना या प्रतिक्रमण किये बिना जीवन के अन्तिम क्षणों में देह त्याग कर किसी एक देवलोक में देव. रूप में उत्पन्न होता है। वह देव महान् ऋद्धि वाला ...यावत्....उत्कृष्ट स्थिति वाला होता है । ____आयु भव और स्थिति का क्षय होने पर वह उस देवलोक से च्यव (दिव्य देह छोड़) कर (पूर्व कथित) किसी एक कुल में बालिका रूप उत्पन्न होता है... यावत्....उस बालिका को ....यावत्....मार्या रूप में देते हैं । ____ वह अपने पति की केवल एकमात्र प्राणप्रिया होती है...यावत्...पहले के समान सारा वर्णन (शिष्यों द्वारा) कहलाना चाहिये। ___ उसे अपने प्रासाद में आते-जाते देखते हैं।...यावत्...आपके मुख को कौन-से पदार्थ स्वादिष्ट लगते हैं ? सूत्र ३२ .' तोसे तहप्पगाराए इत्थियाए तहारूवे समणे वा माहणे वा जावधम्म आइक्खेज्जा? हंता ! आइक्खेज्जा। सा णं पडिसुणेज्जा ? णो इणठे समठे। अभवि या णं सा तस्स धम्मस्स सवणयाए । ___ सा च भवति महिच्छा जाव-दाहिणगामिए णेरइए आगमेस्साए दुल्लभबोहिया वि भवति । तं खलु समणाउसो! तस्स णियाणस्स इमेयारवे पावए फल-विवागे भवति । जं नो संचाएति केवलि पण्णत्तं धम्म पडिसुणित्तए।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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