Book Title: Ched Suttani Aayar Dasa
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: Aagam Anyoug Prakashan

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Page 179
________________ १५६ अहो यह चेलणा देवी महान् ऋद्धि वाली है... यावत् ... बहुत सुखी है । वह स्नान बलिकर्म... यावत्... कौतुक मंगल प्रायश्चित्त करके... यावत् ... सभी अलंकारों से विभूषित होकर श्रेणिक राजा के साथ मानुषिक भोग भोग रही है । आयारदसा A हमने देवलोक की देवियाँ नहीं देखी हैं । ( हमारे सामने तो) यही साक्षात् देवी है। यदि चारित्र तप, नियम एवं ब्रह्मचर्य पालन का कुछ विशिष्टि फल मिलता हो तो हम भी भविष्य में वैसे ही मानुषिक भोग भोगें । कुछ साध्वियों ने इस प्रकार के संकल्प किये । सूत्र २१ 'अज्जो' त्ति समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी "सेणियं रायं चेल्लणादेवि पासिता इमेयारूवे अज्झत्थिए जावसमुपज्जत्था - अहो णं सेणिए राया महिड्दिए जाव - से तं साहू ; अहो णं चेल्लणा देवी महिड्डिया सुंदरा जाव - साहूणी । सेणू अज्जो ! अत्थे समट्ठे ?” हंता, अत्थि । श्रमण भगवान महावीर ने बहुत से निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा : प्रश्न - "आर्यो ! श्रेणिक राजा और चेलणा देवी को देखकर इस प्रकार के अध्यवसाय... यावत् ... • उत्पन्न हुए ?" "अहो ! श्रेणिक राजा महद्धिक है... यावत् कुछ साधुओं ने इस प्रकार के विचार किये ?" "अहो चलणा देवी महद्धिक है ... यावत् कुछ साध्वियों ने इस प्रकार के विचार किये ?" हे आर्यो ! यह वृत्तान्त यथार्थ है । उत्तर - हाँ भगवन् ! यह वृत्तान्त यथार्थ है ।

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