Book Title: Chaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Author(s): Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publisher: Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh

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Page 9
________________ प्रस्तावना. दीया ए वाक्यमा “दी” ह्रस्व जोएते दीर्घलखी,इत्यादि मुहाना बे वाक्योमा ह्रस्व दीर्घनी बे खोटो , तेमज याखा स्तुतिनिर्णयं ग्रंथमां तो नाषामां सेंकडो खोट्यो थमने (श्रावक लोकोने) पण नासन थायडे, तो संस्कृत लखवामां केटलीखोट्यो हशे? ते अमेकांइलखी शकता नथी:पण यात्मारामजीए श्री अमदावादमां सनासमद श्री शत्रंजयतीर्थाधिराज जेमा रहेलो एवो सर्वोत्तम श्री सोरठदेश तेने अनार्य प्ररूप्यो त्यारे तेमनी परंपरामां रहेला तेमना काकागुरु पन्यास रत्नविजयजीए तेमने हितशिदाने अर्थे आर्यानार्यदेशज्ञापक चरचा पत्र ब. पावी देशावरोमां प्रसिह करयो. ते हितशिदाने खंमन करवा आर्यदेशदर्पण बनान्यो, तेमां प्रात्मारामजी तथा आत्मारामजीना शिष्य शांतिविजये खोट्यो काढी ते केटलाक तो व्याकरणद्वाराए विकल्प हता, तेनने अशुभ मखीने खोटो बतावी. अने पृष्ट १६ अने पंक्ति उनी शुक्ष्मिां निग्रंथानांवानिग्रंथी ए वाक्यमां “थी” इस्व. जोडएतेदीर्घलखी तथा पृष्ट १६ पंक्ति १ए नी शधिमांग विधिमांऽसादयंति एप्रशुध्वाक्यनी शुद्धिमां ॥माजसा दयंति ॥ए वाक्यमां "धिं"मां अनुस्वार न जोइए, इत्या दि केटलेक स्थले अशुभनी तो शुद्धिकरी नही बने खोट बतावाने पोताना काकागुरुनी खोटी हीलणा

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