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प्रस्तावना.
चारी अंगीकार करी, पण कोइ पासे नपसंपद अर्थात् फरी दिदा धारण करी नही, पण कदाच कोई कहेशे के श्री सोनागविजयजी तथा मणिविजयजी पासे गह धारण करयो तेज उपसंपद ग्रहण करी समजवी, एम कहे ते पण मिथ्या , कारणके सोनागविजयजी तो जेम श्री रूपविजयजीए रूपसी पद्मसीना नामनी हं. मियो चलावी तेम सोनागविजयजी पण इंमियो च. लावता, तथा एक काणे रहेता ने कोई काणे विहार तो तेमनोमेनाविना थतोज नही, इत्यादि असंजमप्रवृत्ति श्री गुर्जर, मारवाड देशना सर्व संघमां प्रसिजे, तेम कारण विना एक ठेकाणे रहेवानी तथा मोली प्रमुखमा बेसवानी अने परिग्रहादि संचय असंजमप्रवृत्ति लोहार (लवार)नी पोलवाला श्री मणिविजयजीनी पण हती, तेथीज मुखपत्ति चरचाना एए मा टष्टमां श्री बुटेरायजी अखेने के *बाइ दिदा लेनेवालीथी ते साधांकी रुपश्ये चडायके पूजा करने लगी, प्रथम तो रुपश्ये चडाइने रत्नविजयजीकी पूजा करी, फेर मणिविजयजीने धागे रुपश्ये चडाइने पूजा करी पीछे मेरेको रुपश्ये चडावगोलगि, तिवारे नितविजयजी बोल्या महारे आगे रुपश्ये चडावरोका कुछ काम नही, हमारे रुपझ्याकी खप नही, इम कहीने मने करदीने तिवारे हमसवे तहां ते कठके